Book Title: Stavanavali
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 142
________________ (१३१) ता जियपै मरणो जलो, सुख नहिं होत समर्थ. ए७ नारी सुनारी तो मिलही, पूर्व पुण्य जो होश ऐसो विरलो जगत्में, जन देखीजें को. एए सोरा कपट कृपानी कूर, कूप पापकी जाणियें; रहियें इनथें दूर, तब सुख सहजें पाश्य. १०० सवैयो. समुळे नहि बात करै बहुघात, रचै व्यतिपांत कुल क्रमसों, धरे मुख हेज हिये घन पेज, हसैहि सहै ज यही भ्रमसों, कहै कविचंद जुचंद मुखि सुवरै हिनचंद हिके श्रमसों, रहियें जिढुंदर जामेंवहुकूर तिहानिकि प्रीति, मिले ब्रमसों. १०१ ॥ दोहा ॥ मुह बोले मीठी जुगति, फूठी चित्तकी रीति धीठी अन श्ठी मती, दीठी मौनहि प्रीति. १०५ वरजी रहै न सिख सुने, हटकी मानत नाहिः । आंखी माखी एक सी, सब काहू पै जांहि. १०३ ॥कवित्त ॥ प्रीतकी न गीतकी न रीतकी कवीतकी न, मित्तकी न चित्तकी न नैस ऐसी मोथरा; Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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