Book Title: Stavanavali
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 160
________________ (१४) रे ॥ तुज गुण मत्सरी मत होये, करी निज जीवनी शुधिरे ॥ शांति ॥ १६ ॥ संयम योग मूकी क री, वश कस्वा जे जन लोक रे ॥ शिष्य गुरू जक्त पुस्तक नख्या, अंते दीये सम विणुं शोकरे ॥ शांण ॥ १७ ॥ प्रशम समता सुख जलधिमां, सुर नर सु ख एक बिंद रे ॥ तेणे तुं सिंच सम वेलडी, मूकी दे अपर सव दंद रे ॥ शांति० ॥ १७ ॥ एक दण विश्व जंतु परे, तुं वसी जीव सम नाव रे ॥ सर्व मैत्री सुधा पान , सकल सुख सन्मुख लाव रे ॥ शांति ॥ १५ ॥ श्राप गुणवंत गुण रंजी, दीन पुःखी देखी दुःख चूर रे ॥ निर्गुणो वास विरति रही, सकल चंद सुख शुचि पूर रे॥ शांति॥॥इति॥ TUR Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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