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प्राणी ० ॥ ५ ॥ एकसो नवाणुं जव लगे खंड्या, शि यल विषय संबंध ॥ तेहवो एक रात्री जोजनमां, क
निका चित बंध रे ॥ प्राणी० ॥ १० ॥ रात्रि जो जनमां दोष घणा बे, कहेतां नावे पार ॥ केवली कदेतां पार न पावे, पूरव कोमी मकार रे ॥ प्राणी ० ॥ ११ ॥ एवं जाणीने उत्तम प्राणी, नित चलविहार करीजे ॥ मासे मासे पास खमणनो, लान एणी वि ध लीजे रे ॥ प्राणी० ॥ १२ ॥ मुनि वसतानी एह शीखामण, जे पाले नर नारी ॥ सुरनर सुख विल सीने होवे, मोक तथा अधिकारी रे ॥ प्रा० ॥ १३ ॥
अथ श्री पर्युषण पर्वनो स्वाध्याय प्रारंभः ॥
॥ पर्व पजुस श्रावीयां रे लाल, किजे घणां ध म ध्यानरे ॥ जवीक जन ॥ रंज सकल निवारी यें रे लाल, जीवोने दीजे अजय दान रे ॥ ज० ॥ पर्व० ॥ १ ॥ ए की || सघला मास मांदे शिरे रे लाल, जाडव मास सुमासरे ॥ ज० ॥ तिए मांहे आठ दिन रूमा रे लाल, कीजे सुकृत उल्लास रे ॥ ज० ॥ प० ॥ २ ॥ खांगण पीसण गारनां रे ला ल, न्हावण धोवण जेह रे ॥ ज० ॥ एहवा श्रारंज टालवा रे लाल, उत्सव करीये अनेकरे ॥ ज० ॥
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