Book Title: Stavanavali
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 149
________________ ( १३८ ) प्राणी ० ॥ ५ ॥ एकसो नवाणुं जव लगे खंड्या, शि यल विषय संबंध ॥ तेहवो एक रात्री जोजनमां, क निका चित बंध रे ॥ प्राणी० ॥ १० ॥ रात्रि जो जनमां दोष घणा बे, कहेतां नावे पार ॥ केवली कदेतां पार न पावे, पूरव कोमी मकार रे ॥ प्राणी ० ॥ ११ ॥ एवं जाणीने उत्तम प्राणी, नित चलविहार करीजे ॥ मासे मासे पास खमणनो, लान एणी वि ध लीजे रे ॥ प्राणी० ॥ १२ ॥ मुनि वसतानी एह शीखामण, जे पाले नर नारी ॥ सुरनर सुख विल सीने होवे, मोक तथा अधिकारी रे ॥ प्रा० ॥ १३ ॥ अथ श्री पर्युषण पर्वनो स्वाध्याय प्रारंभः ॥ ॥ पर्व पजुस श्रावीयां रे लाल, किजे घणां ध म ध्यानरे ॥ जवीक जन ॥ रंज सकल निवारी यें रे लाल, जीवोने दीजे अजय दान रे ॥ ज० ॥ पर्व० ॥ १ ॥ ए की || सघला मास मांदे शिरे रे लाल, जाडव मास सुमासरे ॥ ज० ॥ तिए मांहे आठ दिन रूमा रे लाल, कीजे सुकृत उल्लास रे ॥ ज० ॥ प० ॥ २ ॥ खांगण पीसण गारनां रे ला ल, न्हावण धोवण जेह रे ॥ ज० ॥ एहवा श्रारंज टालवा रे लाल, उत्सव करीये अनेकरे ॥ ज० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162