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(१५)
१० दीवाली नुं स्तवन ॥ मारे दीवाली रे थइ याज प्रभु मुख जोवाने ॥ सख्यां सख्यां रे सेवकनां काज, ज वडुःख खोवाने ॥ टेक ॥ महावीर स्वामी मुगतें पहो ता ने, गौतम केवल ज्ञान रे ॥ धन श्रमावास्या धन दीवाली मारे, वीर प्रभु निर्वाण ॥ जिनमुख० ॥ मारे दीवाली० ॥ १ ॥ चारित्र पाल्यां निर्मलां ने, टाल्या विषय कषाय रे ॥ एवा प्रजुने वांदियें तो, उतारे जवपार ॥ जिन० ॥ मा० ॥२॥ बाकुला वहोरया वीरजी ने, तारी चंदनबाला रे ॥ केवल लइ प्रभु मुक्त पहोता, पाम्या जवनो पार ॥ जिन० ॥ मा० ॥ ३ ॥ एवा मुनिने वांदीये जे, पंचमज्ञानने धरता रे ॥ सम वसरण दइ देशना रे प्रभु, तारया नर ने नार ॥ जिन० ॥ मा० ॥ ४ ॥ चोवीशमा जिनेसरु ने, मुक्ति तथा दातार रे ॥ कर जोडी कवियण एम जणे मारो, ज वनो फेरो टाल || जिनमुख० ॥ मा० ॥ ५ ॥ १ मारुं मन मोह्युं रे श्री सिद्धाचलें रे, मारुं मन मोयुं रे श्री विमलाचलें रे ॥ देखी ने दरखित थाय ॥ विधि शुं कीजें रे जात्रा एहनी रे, जव जवनां दुःख जाय ॥ मारुं ॥ १ ॥ पंचमे रे रे पावन काररों रे, ए समुं तीरथ न कोय ॥ महिमा मोटो रे, महियल एहनो
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