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(१३) नाही निर्मल थश्ये, करी पूजा आंगी रचालं रे॥ ॥ मुंगर ॥३॥ हाथी पोलमें अरिहंतजीके देहरे, धरी निवेद नावना जाऊं रे ॥ मुंगरण ॥ ४ ॥ नथु कल्याण कवि दीपनो श्रावक कहे, शरधाथी सम कित पालं रे ॥ सुगरण ॥५॥
१५ तारंगानी टुंके मूकुंमान गुमानरे॥ताटेक॥ मूल नायकजी हो अजित जिनेश्वर, सोहे देहरु मेरु समान रे ॥ तारंगानी ॥ १ ॥ केसर चंदन अगर कपूर धूप, करें। पूजा वधारोनवान रे ॥ तारंगा ॥ ॥२॥ आंगी रचो पंच पुष्पावरणी, करणी करोने शुजध्यान रे ॥तारं ॥३॥ नथु कल्याण कवि दिपनो श्रावक कहे, मूकी मान गाउने ज्ञान रे॥तारं॥४॥
१६ लेता जाउ रे सामलीया बीडी पाननकी, बीमी पाननकी दील जाननकी रे ॥ लेता॥ टेक ॥ काथा रे चूना लविंग सोपारी, वारी तेरा दील जाननकी ॥ लेता ॥ १॥ ताल मृदंग शरणा सरोदा, बाजी बनी रंग ताननकी॥ लेता॥२॥ सहसावनकी कुंज गलनमें, लगी फरी शुन ध्याननकी ॥ लेता ॥ ॥३॥ कहे नथू प्रनु धर्म प्रकाशित, हुं बलिहारी केवलज्ञाननकी ॥ लेता ॥ इति ॥
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