Book Title: Stavanavali
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 122
________________ ( १९१) ॥॥ सात माणस नितमारतो, करतो पाप अघो र हो ॥ सुंदर ॥ अर्जुनमाली में उफस्यो, बेद्यां कर्म कठगेर हो ॥ सुंदर ॥ तप ॥३॥ नंदीषेणने में कि यो, स्त्रीवसन वसुदेव हो ॥ सुंदर ॥ बहुंतेर सहस अंतेउरी, सुख नोगवे नित्यमेव हो ॥ सुंदर ॥ तप॥ ॥४॥ रूप कुरूप कालो घणो, हरिकेशी चंमाल हो ॥ सुंदर ॥ सुर नर कोमि सेवा करे, ते में कीधी चाल हो ॥ सुंदर॥ तप॥॥विष्णुकुमर लब्धे कियु, लाख जोयण- रूप हो ॥ सुंदर ॥ श्रीसंघ केरे का रणे, ए मुफ शक्ति अनुप हो ॥ सुंदर ॥ तप० ॥ ॥ ६॥ अष्टापद गौतम चढ्या, वांद्या जिन चोवीश हो ॥ सुंदर ॥ तापस पण प्रतिबुजव्या, तेणे मुफ अ धिक जगीश हो। सुंदर॥तप० ॥ ७॥ चौद सहस श्रणगारमां, श्री धन्नो अणगार हो। संदर॥ वीर जि णंद वखाणीयो, ए पण मुफ अधिकार हो ॥ सुंदर ॥तप० ॥ ॥ कृष्ण नरेसर श्रागले, उक्कर कार क होय हो ॥ सुंदर॥ ढंढण नेमीप्रशंसीयो, मुफ म हिमा सवि तेह हो॥ सुंदर॥ तप०॥ ए॥ नंदीषण वहोरण गयो, गणिकाये कीधी हास हो ॥ सुंदर ॥ वृष्टि करी सोवन तणी, में तस पूरी श्राश हो ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162