Book Title: Stavanavali
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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तां बालक तां रूडां, जां लग नरढ़ निशंक; जब तिरिया रस चाखियो, परिपरि चडे कलंक. ४० विशवानर अंगीठमी, वेला अवसर वात; ए तिरिया अंगी वडी, दहति रहे दिनरात. जेणे बिंद ब्रह्मा वसै, वसै ऊहेरह सार; बिंद हरण ए गोदडी, नरह तणो शणगार. नारी बंधय बंधया, कीधा पुरुष बयल; निशि दिन जार न उतरे, ताथ्यो फिरे बल्ल. क्यां गोवींद क्यां गोरमी, क्यां लक्षण क्यां लाज; जा संगत नारी वसै, सरै न एको काज. तिरिया मदन तलावमी, बुडो सयल संसार; काडणहारो को नही, बूंका बूंबत वहार. वि खूंटे तूं कों मरे, अरे सांजले नूर; किसी सगाइ नारिशुं जेह निसरशे दूर. इक कुग्रह प्रति दोहिलो, एवं हियडे श्राण; कवि नरपति इम उच्चरे, नारि नव ग्रह जाए. ५६ शणगारे सूरज वसे, वाणि वसै सोमेण; मंगल मंगल वसै, खालिंग ने बुधे. लखण तिदां सुरगुरु वसे, संजोगे शुक्रेण; वेणी कंत वसंतडो, दुष्ट मित्तिशि नेप.
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