Book Title: Stavanavali
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 137
________________ ( १२६ ) ५२ ५३ तां बालक तां रूडां, जां लग नरढ़ निशंक; जब तिरिया रस चाखियो, परिपरि चडे कलंक. ४० विशवानर अंगीठमी, वेला अवसर वात; ए तिरिया अंगी वडी, दहति रहे दिनरात. जेणे बिंद ब्रह्मा वसै, वसै ऊहेरह सार; बिंद हरण ए गोदडी, नरह तणो शणगार. नारी बंधय बंधया, कीधा पुरुष बयल; निशि दिन जार न उतरे, ताथ्यो फिरे बल्ल. क्यां गोवींद क्यां गोरमी, क्यां लक्षण क्यां लाज; जा संगत नारी वसै, सरै न एको काज. तिरिया मदन तलावमी, बुडो सयल संसार; काडणहारो को नही, बूंका बूंबत वहार. वि खूंटे तूं कों मरे, अरे सांजले नूर; किसी सगाइ नारिशुं जेह निसरशे दूर. इक कुग्रह प्रति दोहिलो, एवं हियडे श्राण; कवि नरपति इम उच्चरे, नारि नव ग्रह जाए. ५६ शणगारे सूरज वसे, वाणि वसै सोमेण; मंगल मंगल वसै, खालिंग ने बुधे. लखण तिदां सुरगुरु वसे, संजोगे शुक्रेण; वेणी कंत वसंतडो, दुष्ट मित्तिशि नेप. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only աս ug Աս ५७ ԱՄ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162