Book Title: Stavanavali
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 139
________________ ( १२८ ) तां एवं करे, जेवुं करे न कोट; पेठा चोट उतावली, ए वेरण कर लोइ. सतावीश हिडे वसे, मुख मंडण ढे सात; कहे नरपति ते नारशुं, केम करीजें वात. ते वेरागी साचला, जे वन पैठा जाज; इंद्र विगूतो बापको, ए तिरिया के काज किम जीवे ते बापमा, कुणशुं करे ति राव; फूफुण्य नागणि जिसी, तिरिया एहज जाव. नारी नही निशाचरी, विए नीर जे वहति; बोल्या विए मेले नहीं, कविता एम कहंति. ७३ साचं ते सुपनांतरे, जूगं बाजे तूर; कहि नरपति ए कामिनी, कंदल कूर कपूर. नारी चोरी एके रस, हृदय विचारी जोय; जे सुख व्है मोरी किये, ते सुख नारी होय. दिवसा वाणिज अति घणा, जे धुरते व्यापार; जे नर धूते नारिने, ते धूरत संसार. तरस्यां लोही पाइयो, नूरूयां दीधुं मांस; आपणडुं बाली करी, अवरह कीधी यास. पहिली बीजें चांद्रएं, तिम तिरियाको नेह; कड़े नरपति सुण बापमा, कां विडंबे देह. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ६५ Jo ७१ ७४ उ ७६ งง IG www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162