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( ३ )
॥ मगसी पारसनाथनी लावणी ॥ ॥ मूलक बिच मगसी पारसका, बाज रह्या डंका ॥ मुगतिगढ जीत लीया बंका रे ॥ मुग० ॥ मूलक० ॥ एकणी ॥ करमदल बलकूं दाय कीया रे ॥ कर॥ मुगति महेल में केलि करे, अनुभव अमृत पीया ॥ सासता जीया, महाराज ॥ सा० ॥ कल्याण कारज कीया, अमरापुर पदवी लीया ॥ कमठ जसका कर गये फंका रे ॥ कम० ॥ मू० ॥ १ ॥ प्रभु पारस जज ले जा इरे ॥ प्र० ॥ जाव जरमका मेट जोत, तेरी जगमें सवाइ ॥ टेककूं टालो, महाराज ॥ टेक ॥ चंचल चित्तसें मत चालो, गुमान गरवने गालो, गरवसें धूल मली लंका रे || गर० ॥ मूलक० ॥ २ ॥ मेरे शुभ जाग्य उदय आया रे ॥ मेरे० ॥ इण पंचम श्रारामां हे प्रभु, मगसी पास पाया ॥ पापसें करता, महाराज ॥ पाप० ॥ जव्य जीव ध्यान दिल धरता, श्रावक सम रण करता, मरण दुःख मिठ्या मेरे अंगका रे ॥ मर ० ॥ मूलक० ॥ ३ ॥ महीमा मगसी की अब जानी रे ॥ मही० ॥ नहीं उधमी मेरी आंख बिलोया, प रब विना पानी ॥ में जिनवर जाच्या, महाराज ॥ में जिन० ॥ जिनदास जिनंदसें राच्या, मगसी पारस
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