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प्रय
की, आसा कैसी करणी ॥अं॥ रावणको राज गयो, लायो पर घरणी॥अब बल जल राख ६. लंका मनहरणी ॥ अंगके० ॥१॥धाम चोर राज खाय, धन गले सब धरणी॥अब खरच्यो नहिं खेत्र सात, खायो खोयो परणी॥अं॥२॥ सेव ले जिनदास सुमति, जवजलकी तरणी॥ अब समकित शिरदार सेव, शिव सुख पद वरणी ॥ अंग ॥३॥ • पद चोथु ॥ राग उपर प्रमाणे ॥ लगरहि तुम दरिसणकी, मुज मन श्रास रे ॥ कुगुरुने कियो मे रो, ग्यानको बिणास रे ॥ लग ॥१॥ कर्मने मो हे खुब कस्यो, हु नहिं खुलास रे ॥ जिम तिम मोहे तार लीजो, आयो चरणपास रे ॥ लग ॥ ॥२॥ लोनमांही लपट रह्यो, कियो ममतामें वास रे॥ जोबन धन धस्यो रह्यो, निकल गयो सास रे ॥ लग ॥३॥ तप जप बिन जनम गयो, काव्यो डे में घास रे॥ जगत् सर्व धुत खायो, उग बन्यो जिनदास रे ॥ लग ॥४॥
पद पांचमुं ॥ यो जिनदास जूगे रे जूठगे॥ वाने ले लाकमी कूटो ॥ यो ॥ सुकृत सामो पग नहिं जरतो, ग्यान हीयाको खूटो॥ सुधास्यो सुधरे नहि
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