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बनारसी नगरी में तेरा जनम है, माता वामाके नंदा ॥ अश्वसेन के कुल में शोने, जैसा शरदपूनम चंदा ॥ स्वर्ग लोकमें हुवा थानंदा, इंद्राणी मंगल गावे ॥ तेत्रीश क्रोम देवता मिलकर, छव करने यावे ॥ २ ॥ कोइ श्रावता कोइ गावता, कोइ नाम लेता हे देवा ॥ चोसठ इंदर रज करंता, चंद्र सूरज करता सेवा || केइ सुर नर साहेब के श्रागें, अरज करता खडा खमा ॥ जिनकेस रूपको पार न पावे, जिनका गुण हे सबसें बना ॥ ३ ॥ डर देशसें खाया जोगी, बडे जोर तपसा करता ॥ नी चें लगाता ज्वाला जोगी, बडे बडे जोकें खाता ॥ बार बरसकी उमर जिनजीकी, बोटेपनमें बहोत कला ॥ ब रोवरी के लीये सोबती, तपसीकूं देखन चला ॥१४॥ ज्ञान देख के बोले जोगी सें, ऐसी तपस्या क्युं करता ॥ जो गी तेरे बड़े लकडे में, नाग नागणी दो जलता ॥ पारस नाथ जोगी शुं कहेता, तोबी तपसी नही सुनता ॥ लक मे दीये फेंक जंगल में, लोक तमासा देखता ॥ ५॥ क्या कीया बे जोगी तुमने, नाग नागणी जला दीया ॥ सर न नवका दीया नागकूं, धरणेंद्र पदवी पाया ॥ बमी उमेदसें या साहेब, संवत्सरीका दान दीया ॥ मा ता पिताकी श्राज्ञा लेकर, महाराजाने योग लीया ॥६॥
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