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(७३) यन लोनाय, हियो नित फरके ॥ हियो० ॥ मोहे जिनदरसनकी श्रास, पाप सब सरके॥ अब सुरपति निरखत रूप, नजर नर नेनां ॥ नजर ॥ अब॥१॥ अब मिट्यो मरण नव नवको, श्रास मुफ पूरो ॥
स० ॥ में जपुं जिणंदको नाम, मेनुं नहीं रो॥ ए घनघाति घाले घेर, करम सब चूरो ॥ कर॥ में कुरगति नमतां आयो, आप हजूरो ॥ अब शुज न जरां मुफ निरख, मुगती पद देनां ॥ मुग०॥ श्रवण ॥२॥ अब हे हीराकी खान, ग्यान निज करनी॥ ग्या॥ ए मुगति पंथ दातार, सुमतिकी घरनी ॥ ब शुक्ल ध्यानकी पेमी, चढा नीसरनी ॥ चढा ॥ एसा जगमें संत सुजान, मुक्ति पद वरनी ॥ अव
आपो मया कर करके, अमर सुख चेनां ॥ अमर ॥अब ॥३॥ अब बैठ करूं में मोज, आनंदके घर में ॥श्रा॥ में परख्या श्री जिनराज, जगत् कुण नर मे ॥ में फुःख जोगता हे अनंत, करे कुण लेखो ॥ कण्॥ में अरज करूं तन मनसें, नजर नर देखो॥अब बोलत युं जिनदास, सरवरस बेनां ॥ स॥ अ॥४॥
॥ उपदेश लावणी॥ ॥खबर नहिं आ जुगमें पलकी रे ॥ खबर ॥
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