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कोइ सत्य धरमधारी ॥ प्रभु तुम परमारथ पाया, सरण अब जिनदास आया ॥ ७ ॥
८ ॥ चेत नर निगोदका बासी, कराई जगमें तें हांसी ॥ कुमतिकि पकी गले फांसी, सुमतिसुं रखी हे ऊदासी ॥ कुमति बसी सेज खासी, मान रह्यो ममताकुं मासी ॥ हियो खोल अरिहंतको परखो, करो जिनदास च्याप सरखो ॥ ८ ॥
[ ॥ फल नर तेरी जिंदगानी, शीख सूत्रोंकी नहीं मानी ॥ कीया नहीं गुरु निग्रंथ ग्यानी, कान सें लगी कुमति रानी ॥ जगत् में उतर गया पानी, गति तेरी डुरगतिकी ठानी ॥ सेवक तोरा जिन दास बाजे, सुधारोगे तुमही काजें ॥ ए ॥
१० ॥ सफल नर तेरी जिंदगानी, शीख सूत्रों की तें मानी ॥ किया निज गुरु निर्ग्रथ ग्यानी, कानसें लगी सुमति रानी ॥ जगत्में अधिक चढ्यो पानी, गति तेरी सुरगतिकी ठानी ॥ सेवक तेरा जिनदास बाजे, सुधारोगे तुमही काजें ॥ १० ॥
॥ अथ शीखामानी लावणी ॥
॥ चल चेतन अब उठ कर अपने, जिनमंदिर जइयें ॥ कीसी की मूंकी ना कहीयें, कीसी की बूरी ना
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