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(४६) धृ०॥ ए श्रांकणी ॥ बिनमें ताता बिनमें सीरा, लि नमें नूखा प्यासा ॥ बिनमें रंक रंक ते राजा, बिनमें हर्ष उदासा ॥ ॥१॥ तीर्थंकर चक्री बलदेवा, इंड चंज धरणिंदा ॥ असुर सुरवर सामानिक नर, क्या राणा राजिंदा ॥ ॥॥ संसारी जीय पुज ल राते, एही धर्म प्रचारा ॥ पुजल संगते जनम मर ण गण, ज्युं जल बीच पतासा ॥ १० ॥३॥ जिन्न जाव पुजलतें जावे, तुंश्रकलंक अविनाशी॥ ज्ञानसा र निजरूपें नाही, जनम मरण नवपासी॥०॥४॥ - पद बीजें ॥ राग बीहाग ॥ दरवाजा बोटारे, नि कल्या सारा जग उनहींसें ॥ दर॥ए टेक ॥ क्या बंधु क्या मा बाबु,क्या बेटा क्या घोटारे॥ दर ॥१॥ दय गय करणी दोय कर चरणी, क्या को मोटा गेटा रे ॥दर ॥२॥ क्या पूरव क्या उत्तर पंथा, दक्षिण पछिम मोटा रे ॥ दर ॥३॥ ज्ञान सार दरवाने पाये, या सिडसनोटा रे॥ दर॥४॥ । पद त्रीजुं ॥ राग धनाश्री ॥ कौन किसीको मित्त, जगतमें कौन किसीको मित्त॥ए श्रांकणी ॥ मातता त उर जात सजनसें, कांहि रहेत निचिंत॥जगार॥ सबही अपने स्वारथ के है, परमारथ नहीं प्रीत ॥
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