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बोले, श्रावा ते गमनने निवारी ॥ महा ॥३॥
पद सत्तरमंकाफी॥ बंदात क्युनले, श्रीजिनवर को नाम ॥६॥ ए आंकणी॥ काल अनंता बहु कुःख सहीयां, कबुए न पायो मान ॥ चरण जिनवरके अब थे पायो, मीट्यो मन अनिमान ॥ बं० ॥१॥ कीमी कुंजर एक करि जाणे, राखे हृदयमा ध्यान ॥ कर जोमी गुमान गुण गावे, पावे पदवी विमान॥॥॥
पद अढारमु ॥ कोण कर जजाल, जगमे जीवना थोमा ॥ को॥ ए श्रांकणी ॥ माता पिता तो जनम दीयो हे, करम दीयो रे कीरतार ॥जगमेंा॥जूठीरे काया ने जूठी रे माया, जूग सब संसार जगमें॥ ॥२॥ कोश मरे दस वीस वरसमें, को बुढा कोश बाल ॥ जगमें॥३॥ एही संसार हे उसका पा नी, धूप पडे मर जाय ॥ जगमें ॥४॥ एही संसार हे अदकी खामीयो, जे फिर आवे कोय वार ॥ जग में ॥ ५ ॥ चेतन राय समजकर चालो, ज्युं पामो नव पार ॥ जगमें ॥६॥ __ पद उंगणीशमुं ॥ फरसे रे महाराज, आज राज झझि पाई ॥फ॥ नवको बिघन दूर गयो, पूरव पुण्य उदय जयो, जिन तुमारो दर्श लह्यो, आनंदधून
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