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(२४) पद चोथु ॥ राग श्राशावरी ॥ चेतन जो तुंझान अन्यासी,श्रापहि बांधे श्रापहि बोडे, निजमति शक्ति विकाशी ॥ चेतन० ॥१॥ जो तुं श्राप स्वनावे खेले,
आशा बोडी उदासी॥ सुरनर किन्नर नायक संपत्ति, तो तुक घरकी दासी ॥ चेतन०॥ ॥ मोह चोर जन गुण धन लुटे, देत आस गल फांसी ॥ श्राशा बोमी उदास रहे जो, सो उत्तम सन्यासी॥चेतन॥ ॥३॥ जोग ले पराश धरतुं हे, याहि जगमें हांसी ॥ तुं जाने में गुनकुं संचुं, गुण तो जावे नासी॥ ॥ चेतन ॥४॥ पुजलकी तुं श्राश धरतु हे, सो तो सबेहि विनाशी ॥ तुं तो निन्नरूप हैं उनतें, चिदा नंद अविनाशी ॥ चेतन ॥५॥ धन खरचे जन बहुत गुमाने, करवत लेवे कासी ॥ तोनी पुःखको अंत न श्रावे, जो श्राशा नही गासी ॥ चेतन ॥ ॥६॥ सुख जल विषम विषय मृगतृष्णा, होत मूढ मति प्यासी॥ विन्रम जूमि नई पर श्राशा, तुं तो सहज विलासी ॥चेत० ॥ ॥ याको पिता मोह फुःख जाता, होत विषय रति मासी ॥ नव सुत न रता अविरति प्रानी, मिथ्यामति दे हांसी॥ चेत॥ ॥७॥ श्राशा गेमी रहे जो जोगी, सो होवे शिव
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