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(३४) समुजको लावे बाह, नीर जरा जररे ॥ पवन०॥३॥ बरो दिनके बरी रात, वाकी कोण मात तात, इतनी बतावे बात, सोही मेरो गुर रे ॥ पवन ॥४॥ __ पद वीशमुं ॥ राग सारंग ॥ हम मगन नये प्र नु ध्यानमें, ध्यानमें ध्यानमें ध्यानमें॥ हम॥ए यांकणी ॥ बिसर गइ मुविधा तन मनकी, अचिरा सुत गुन शानमें ॥ हम ॥१॥ हरि हर ब्रह्मा पुरं दरकी रीध, श्रावत नही को मानमें ॥ चिदानंदकी मोज मची हे, समता रसके पानमें ॥ हम ॥२॥ इतने दिन तुम नांही पीलान्यो, मेरो जनम गयो अजानमें ॥ अब तो अधिकारी हो बेठे, प्रनु गुण अखय खजानमें ॥ हम ॥३॥ गश् दीनता सबही हमारी, प्रजु तुम समकित दानमें ॥ प्रजु गुण अनु जवके रस धागे,श्रावत नही को मानमें ॥ हम ॥ ॥॥ जिनही पाया तिनही बिपाया, न कहे कोउके कानमें ॥ ताली लागी जब अनुजवकी, तब समजे कोउ सानमें ॥ हमा॥ प्रजु गुण अनुजव चंद्रहा स जीजं, सो तो न रहे म्यानमें ॥ वाचक जस कहे मोह महा अरि, जीत लीयो मेदानमें । हम ॥६॥
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