Book Title: Sramana 2015 01
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 11
________________ 4 : श्रमण, वर्ष 66, अंक 1, जनवरी-मार्च 2015 रहना ही असम्भव हो जाये। स्वप्न नींद को बनाये रखने में सहायक हैं। उदाहरणतः कभी-कभी नींद में हमको जोरों की प्यास लगती है, ऐसी दशा में यदि स्वप्न न हों, तो तत्काल नींद खुल जाती है, किन्तु हमें स्वप्न दिखाई देता है कि हम पानी पी रहे हैं, और कुछ समय तक हमारी नींद बनी रहती है। इस प्रकार मानसिक इच्छाएँ और प्रवृत्तियाँ भी नींद से अभिव्यक्त होती हैं और नींद को बनाये रखती हैं। उदाहरणत: परीक्षा के भय एवं चिंता से व्याप्त विद्यार्थी को परीक्षा सम्बन्धी स्वप्न दिखाई देते हैं, जिनके द्वारा भय एवं चिन्ता की अभिव्यक्ति होती रहती है। इस प्रकार स्वप्न में हमारी सुखद - दुःखद सभी इच्छाओं और कामनाओं की पूर्ति होती है और इससे मानसिक शान्ति मिलती है । यदि इनके निकलने का यह स्वाभाविक मार्ग न हो और ये इच्छाएँ और कामनायें किसी असामान्य व्यवहार के रूप में प्रकट हों तो व्यक्ति की अनुकूलता में अनेक बाधायें उपस्थित हो जायेंगी । स्वप्न इनके निकलने का सबसे अधिक सरल उपाय है। इसमें न तो दिवास्वप्नों के समान समय व्यर्थ होता है और न भूलों के समान हानि होती है और न असामान्य व्यवहार के समान अनुकूलता में बाधा होती है । मनोविश्लेषण विज्ञान में स्वप्नों का विश्लेषण करके मनुष्य की अनेक असामान्य व्याधियों के कारणों का पता लगाया जाता है। इसमें व्यक्ति अपनी बुद्धि द्वारा स्वप्न की भिन्न-भिन्न वस्तुओं की साहचर्य द्वारा व्याख्या करता है। इससे उसके अचेतन मन की दशा ज्ञात होती है, जिससे मानसिक व्याधियों के कारणों का पता लगाने में सफलता मिलती है। हम स्वप्न क्यों देखते हैं? स्वप्न तो सभी देखते हैं, पर अधिकतर लोग यह जानने के लिए उत्सुक रहते हैं कि स्वप्न क्यों आते हैं? हम प्रतिदिन स्वप्न देखते हैं, अतः स्वप्न पर विचार करना अपने आपको जानने के लिए आवश्यक है। इसके द्वारा अचेतन मन की क्रियाओं का पता चलता है। मनुष्य में स्वभावजन्य अनेक प्रकार की इच्छाएँ होती हैं। इनमें से अधिकांश इच्छाओं की पूर्ति हमारे जाग्रत अवस्था में हो जाती है और वे शान्त हो के मन

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