Book Title: Sramana 2015 01
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 10
________________ स्वप्न : एक मनोवैज्ञानिक चिन्तन : 3 ६) सी० जी० युंग ने स्वप्न को परिभाषित करते हुए कहा है "स्वप्न व्यक्ति की केवल अतृप्त दमित इच्छाओं एवं अतीत से ही सम्बन्धित नहीं होते वरन् भविष्य के भी द्योतक होते हैं। "५ उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर स्पष्ट होता है कि स्वप्न दैनिक जीवन के अनुभवों के सम्बन्ध में हो सकते हैं तथा दमित इच्छाएँ भी अपना रूप बदलकर अचेतन मन में आ सकती हैं। स्वप्नों का विश्लेषण कर व्यक्ति की मानसिक स्थिति, विचार, व्यवहार और व्यक्तित्व का पता लगाया जा सकता है। स्वप्नों की विशेषताएँ - उपरोक्त विवेचन के आधार पर स्वप्नों की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं: १ - स्वप्न सार्थक होते हैं। २- स्वप्न विभ्रमात्मक होते हैं। ३- स्वप्न प्रतीकात्मक होते हैं। ४- स्वप्नों में दमित इच्छापूर्ति का प्रयास रहता है । ५- स्वप्न अचेतन मन से सम्बन्धित होते हैं। ६- स्वप्न आत्मकेन्द्रित होते हैं। ७- स्वप्न दृश्यात्मक प्रतिमाओं से बने होते हैं। ८- स्वप्न भविष्य की घटनाओं का संकेत देते हैं। ९- स्वप्न जाग्रत अवस्था की पुनरावृत्ति मात्र हैं। - ܝ - विस्तार भय से यहाँ मात्र स्वप्नों की विशेषताओं का उल्लेख ही किया गया है। विशेष “आधुनिक असामान्य मनोविज्ञान" पुस्तक में देखें । स्वप्न का मनोवैज्ञानिक महत्त्व स्वप्न निद्रा में सहायक हैं। लोग कहते हैं कि स्वप्नों के कारण नींद नहीं आती। किन्तु फ्रायड ने सिद्ध किया है कि स्वप्न न हों तो नींद का बने

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