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स्वप्न : एक मनोवैज्ञानिक चिन्तन : 13 ७. लकवा मारने के स्वप्न ऐसे स्वप्नों में व्यक्ति अपने सम्बन्ध में देखता है कि उसके किसी अंग विशेष अथवा संपूर्ण शरीर में लकवा मार गया है और वह हिलने-डुलने के काबिल नहीं है। ९. मृत व्यक्तियों के स्वप्न इन स्वप्नों में व्यक्ति अपने आपको मरा हुआ देखता है या अपने किसी प्रियजन को मरा हुआ देखता है या मरे हुऐ व्यक्तियों को जीवित देखता है। उनसे बातें करता है और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करता है। १०. सामूहिक स्वप्न ऐसे स्वप्न जो एक ही समय में समानरूप से कई व्यक्तियों को दिखाई देते हैं, सामूहिक स्वप्न कहलाते हैं। जब इन व्यक्तियों को किसी घटना या किसी व्यक्ति के बारे में समान अनुभव, समान अभिवृत्तियाँ और समान भावनाएँ आदि हों तो ऐसे स्वप्न दिखाई देते हैं। ऐसे स्वप्न दुर्लभ होते हैं।१४ जैसे “त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित" में वर्णन आता है कि भगवान ऋषभदेव को निराहार रहते हुए एक वर्ष व्यतीत हो गया और विचरण करते हुए भगवान् गजपुर (हस्तिनापुर) पधारे। उसी रात्रि को अर्द्धनिद्रित अवस्था में गजपुर के अधिपति बाहुबली के पौत्र तथा सोमप्रभ राजा के पुत्र श्रेयांस ने स्वप्न देखा कि सुमेरु पर्वत श्यामवर्ण का हो गया है और उसे मैंने अमृत-कलश से अभिषिक्त कर पुन: चमकाया। उसी रात्रि को नगरश्रेष्ठि सुबुद्धि ने स्वप्न देखा कि सूर्य की सहस्त्र किरणें स्व-स्थान से चलित हो रही थी तथा श्रेयांस ने उन रश्मियों को पुन: सूर्य में संस्थापित कर दिया। राजा सोमप्रभ ने भी उसी दिन की पश्चिम रात्रि में स्वप्न देखा कि एक महान् पुरुष शत्रुओं से युद्ध कर रहा है। श्रेयांस ने उसे सहायता प्रदान की जिससे शत्रु का बल नष्ट हो गया। प्रात:काल सभी स्वप्न पर चिंतन-मनन करने लगे। स्वप्न का फल निकला कि श्रेयांस को विशिष्ट लाभ की प्राप्ति होने वाली है। स्वप्न के फलस्वरूप एक वर्ष से निराहरी