________________
48 : श्रमण, वर्ष 66, अंक 1, जनवरी-मार्च 2015 पंक्ति २:- महाराजाधिराज-श्रीरामगुप्तेन-उपदेशात् पाणिपापंक्ति ३:
त्रिक चन्द्रक्षमाचार्य क्षमण-श्रमण-प्रशिष्याचार्यपंक्ति ४:- सर्पसेनक्षमणशिष्यस्य गोलक्यान्त्यासत्पुत्रस्य
चेलुक्षमणस्येति।" अनुवाद“महाराजाधिराज श्रीरामगुप्त के द्वारा भगवत् अर्हत् (यानी तीर्थंकर) चन्द्रप्रभ की यह प्रतिमा उत्कीर्ण करायी गयी। उन्होंने चेलुक्षमण के उपदेश के कारण इसका निर्माण कराया था। चेलक्षमण, गोलक्यान्ति का सत्पुत्र एवं आचार्य सर्पसेन क्षमण का शिष्य था। पाणिपात्रिक (अर्थात् पाणि ही हो पात्र जिसका) चन्द्रक्षमणाचार्य क्षमण-श्रमण का प्रशिष्य था।" द्वितीय प्रतिमा (पुष्पदन्त) की पीठिका पर उत्कीर्ण लेख - पंक्ति १:- “भगवतोऽर्हतः। पुष्पदन्तस्य प्रतिमेयं कारिता। पंक्ति २:- महाराजाधिराजश्रीरामगुप्तेन उपदेशात् पाणिपात्रिक पंक्ति ३:- चन्द्रक्षम (णा) चार्य-(क्षमण)-श्रमण प्रशि (ष्यस्य) पंक्ति ४:अनुवाद"महाराजाधिराज श्रीरामगुप्त द्वारा भगवत् अर्हत् पुष्पदन्त की यह प्रतिमा उत्कीर्ण करायी गयी। उन्होंने पाणिपात्रिक चन्द्रक्षमणाचार्य के प्रशिष्य
................।" तृतीय प्रतिमा (नाम स्पष्ट नहीं) की पीठिका पर उत्कीर्ण लेखपंक्ति १:- . "भगवतोऽर्हतः (चन्द्रप्रभ?) स्य प्रतिमेयं कारिता महा(राजा)धिराजपंक्ति २:- श्री (रामगुप्ते) न उ (पदेशात्) (पा)णि-(पात्रि)...... पंक्ति ३:
पंक्ति
४: