Book Title: Sramana 2015 01
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 64
________________ लीलावाई कहा में अलंकार व्यवस्था : 57 ३. अन्य संसर्गमूलक अर्थालङ्कार १. सादृश्यमूलक अर्थालङ्कार - इस प्रकार के अलङ्कारों में दो वस्तुओं में विद्यमान समता को सामने रखकर कोई बात कही जाती है। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, दृष्टान्त, उदाहरण, अन्योक्ति आदि प्रमुख सादृश्यमूलक अर्थालङ्कार हैं। इस अलङ्कार में प्राय: ४ बातें पायी जाती हैं। उपमेय, उपमान, साधारण धर्म और वाचक शब्द। किसी में भी ये चारों बातें होती हैं, किसी में केवल तीन और किसी में दो ही होती हैं। २. विरोधमूलक अर्थालङ्कार :- इस प्रकार के अलङ्कारों में दो वस्तुओं के मूल में किसी न किसी प्रकार का विरोध रहता है। यह विरोध कई प्रकार का हो सकता है, जैसे वस्तु और वस्तु का विरोध, गुण और गुण का विरोध आदि। विरोधाभास, असंगति, विभावना, विशेषोक्ति, आदि प्रमुख विरोधमूलक अर्थालङ्कार हैं। ३. अन्य संसर्गमूलक अर्थालंकार :- इस वर्ग के अन्तर्गत निम्नलिखित अलङ्कार आते हैं :१. श्रृंखला मूलक :- इनमें दो या अधिक पदार्थों का क्रम से वर्णन होता है और वे एक-दूसरे से श्रृंखला के समान बंधे रहते हैं, जैसे - एकावली कारणमाला आदि अलङ्कार। २. लोकन्याय मूलक - इनमें तर्क, लोक-प्रमाण (दृष्टान्त) से युक्त वाक्य के द्वारा रोचकता उत्पन्न की जाती है - काव्य लिंग, अनुमान अलङ्कार। ३. गूढार्थ प्रतीतिमूलक - (वस्तुमूलक) इसमें व्यंग्य में छिपाकर अथवा उलटी बातें कही जाती हैं जैसे- सूक्ष्म, व्यायोक्ति अलङ्कार। १. उपमा : उपमानेन सादृश्यमुपमेयस्य यत्र सा। प्रत्ययाव्ययतुल्यार्थसमासैरूपमा मता ॥

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