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स्वप्न : एक मनोवैज्ञानिक चिन्तन : 15 देखने पर शीघ्र जाग्रत हो जाना चाहिए तथा उसे गुरुजनों के सम्मुख कहना चाहिए। इससे शुभ फल की प्राप्ति होती है। शुभ स्वप्न मूर्ख व्यक्ति को कभी न सुनाएँ वरना वह स्वप्न का जैसा फल बताएगा वैसे ही अव्यवस्थित और अनिच्छित फल की प्राप्ति होगी। स्वप्न को उत्तम स्वप्नशास्त्री के सामने कहने से उत्तम फल की प्राप्ति होती है। अयोग्य को बताने से अच्छा है गौ के कान में कह देना या मन में ही रख लेना। यदि पहले अच्छा स्वप्न देखकर बाद में बुरा स्वप्न देखा है तो बुरे स्वप्न का ही फल मिलता है और ९. यदि पहले बुरा स्वप्न देखकर बाद में अच्छा स्वप्न देखता है, तो अच्छे स्वप्न का फल ही मिलता है। इस प्रकार स्वप्न हमारी चेतन-अचेतन शक्तियों पर इष्टकारी प्रभाव छोड़कर हमारी चेतना को प्रसन्न या आहत करते हैं।१७।। उपसंहार इस प्रकार पाश्चात्य मनोवैज्ञानिक फ्रायड एवं युंग ने स्वप्नों की जो व्याख्यायें दी हैं, वे एकांगी एवं अपूर्ण हैं। इनसे पूरे स्वप्न-विज्ञान को नहीं जाना जा सकता वरन् उसके एक पक्ष को ही जाना जा सकता है। वे संकीर्ण दृष्टि मात्र हैं क्योंकि एक फूल को देखकर मात्र यह कह देना कि इसमें इतनी पंखुड़ियाँ हैं, ऐसा रंग है, इसका पौधा इतना बड़ा होता है, उसकी उम्र इतनी है, इसमें सुगंध है, इससे इत्र बनाया जा सकता है, आदि तो इसे फूल की पूर्ण व्याख्या नहीं माना जा सकता। इसी प्रकार फ्रायड भी अपनी एकांगी दृष्टि से यह नहीं जान पाये कि रोगी एवं स्वस्थ व्यक्ति के स्वप्नों में क्या अंतर होता है? महत्त्वाकांक्षी के स्वप्न किस प्रकार के होते हैं? कामुक व्यक्ति के स्वप्न किस प्रकार के होते हैं? सैनिक, व्यवसायी आदि के स्वप्न किस प्रकार के होते हैं? सुषुप्ति एवं समाधि की स्थिति में व्यक्ति किस प्रकार का अनुभव करता है? क्या स्वप्न भविष्य की सूचनाएँ भी देते हैं?. या ये मन की कोरी कल्पना मात्र हैं या इनमें वास्तविकता भी है? आदि का अध्ययन फ्रायड नहीं कर पाये तथा इन्होंने मात्र इनको दमित इच्छाओं का परिणाम बता दिया। जबकि अध्यात्मवादियों ने स्वप्न का जितना सूक्ष्म एवं गहरा चिंतन