Book Title: Sramana 2015 01
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 21
________________ 14 : श्रमण, वर्ष 66, अंक 1, जनवरी-मार्च 2015 तपस्वी भगवान ऋषभदेव को श्रेयांस ने वैशाख शुक्ल तृतीया (अक्षयतृतीया) तिथि पर इक्ष रस का आहार दान दिया। भगवान ने वर्षीतप का पारणा किया। 'अहोदानं अहोदानं', के घोष से गगन गुंजायमान हुआ। देवताओं ने पंचविध सुवृष्टि की। इस सामूहिक स्वप्न का बड़ा ही महत्त्व है। श्रेयांस को भगवान् के वर्षीतप के पारणे का बहुत बड़ा लाभ मिला। अत: इस प्रकार के स्वप्न सामूहिक स्वप्न होते हैं।१५ भारतीय मनोविज्ञान में स्वप्न के प्रकार आयुर्वेद ने सात प्रकार के स्वप्न बतलाये हैं द्रष्टा, श्रुत, अनुभूत, प्रार्थित, कल्पित, भाविक तथा दोज। चाक्षुष और श्रोत अनुभव तद् इन्द्रियाँ तथा मन का अनुभव, मन ने जो अपेक्षा की है वह तथा मन ने जो कल्पना की है वह- दोनों ही स्वप्न के कारण होते हैं। भाविक अर्थात् भावी घटनाओं का वर्तमान कालिक ज्ञान देने वाला स्वप्न। ऐसे स्वप्न हो सकते हैं, इस बात को पाश्चात्य शास्त्रज्ञ भी मानने लगे हैं।१६ स्वप्न फल किसे और कब मिलता है जैन शास्त्रानुसार जो व्यक्ति स्थिरचित्त, शान्त, दान्त, जितेन्द्रिय, धर्म में रुचि रखनेवाला, धर्मानुरागी, प्रामाणिक, सत्यवादी, दयालु, श्रद्धालु और गृहस्थ के २१ उत्तम गुणों से युक्त हो उसे जो स्वप्न आता है, वह निरर्थक नहीं जाता। कर्मानुसार यथासमय प्रिय या अप्रिय फल शीघ्र मिलता है। स्वप्नफल प्राप्ति के समय के सम्बन्ध में 'स्वप्नसार-समुच्चय' में बताया गया है कि १. यदि रात के पहले प्रहर में स्वप्न देखता है, तो उसका फल एक वर्ष में मिलता है। २. दूसरे प्रहर में देखे गये स्वप्न का फल छ: महीने में मिलता है। ३. तीसरे प्रहर में स्वप्न देखा है तो एक महीने में उसका फल मिलता है। ४. रात्रि के चौथे प्रहर में स्वप्न देखे तो १५ दिन में। ५. रात्रि की अंतिम दो घड़ी में स्वप्न देखता है तो १० दिन में और सूर्य उदित होते-होते स्वप्न देखे तो उसका तत्काल फल मिलता है। ६. बुरा स्वप्न देखने पर सोये रहना चाहिए तथा उसे किसी के सामने नहीं कहना चाहिए। इससे बुरा फल नहीं मिलता है। ७. उत्तम स्वप्न

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