Book Title: Sramana 2015 01
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 16
________________ स्वप्न : एक मनोवैज्ञानिक चिन्तन : 9 है, लेकिन सामूहिक अचेतन व्यक्ति के जन्म के साथ आता है। व्यक्तिगत अचेतन में व्यक्ति की अधिकतर दमित इच्छाएँ रहती हैं और जातीय या सामूहिक अचेतन में संस्कार के रूप में पूर्वजों की इच्छाएँ तथा अनुभव आते रहते हैं। अत: जातीय अचेतन में संचित ये संस्कार प्रायः स्वप्नों के रूप में प्रकट होते हैं। युंग ने बताया है कि स्वप्न का सम्बन्ध वर्तमान तथा भविष्य में होने वाली घटनाओं से भी रहता है और चेतावनी के रूप में भी होता है। एडलर का स्वप्न सिद्धान्त एडलर ने बताया है कि स्वप्न में मानसिक संघर्ष एवं दमन का हाथ रहता है। एडलर के अनुसार- "स्वप्न में उन समस्याओं के समाधान की चेष्टा की जाती है, जो आधिपत्य की भावना और हीन-भावना के संघर्ष से उत्पन्न होती हैं।" एक ओर हम श्रेष्ठ तथा महान बनना चाहते हैं, दूसरी ओर हम हीन भाव के कारण इन दोनों पहलुओं में सामंजस्य पैदा करने की चेष्टा करते हैं। एडलर कहता है कि स्वप्नों में व्यक्ति की जीवन-शैली की अभिव्यक्ति होती है तथा स्वप्न व्यक्ति की जीवन-शैली तथा उसकी वर्तमान समस्या के बीच एक सेतु बनाने का प्रयास है। एडलर ने स्वप्नों का सम्बन्ध वर्तमान तथा भविष्य दोनों से माना है। स्वप्नों में एडलर अपने भावी जीवन के कार्यों का पूर्वाभ्यास करता है। उसके अनुसार स्वप्न में व्यक्ति ऐसे कार्यों को होते पाता है, जिनका सम्बन्ध उसकी समस्याओं से रहता है और जिसके कारण वह अपने किसी प्रकार के हीन-भाव को दूर कर अपना आधिपत्य स्थापित करने में समर्थ हो सकता है। फ्रायड, युंग और एडलर तीनों के सिद्धान्तों की पुष्टि के लिए हम एक ऐसे स्वप्न का विश्लेषण करेंगे जो स्वप्न एक नवयुवक का है, जो स्नातक था, परतु नौकरी के लिए लाख कोशिश करने पर भी वह बेकार बैठा था। एक रात उसने एक स्वप्न देखा - "मैं अपनी माँ और बहन के साथ सीढ़ियों पर चढ़ रहा हूँ जैसे ही हम लोग चढ़ते-चढ़ते ऊपर पहुँचे हमें पता चला कि मेरी बहन को शीघ्र बच्चा होने वाला है।"

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