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६ : श्रमण,
वर्ष ५४, अंक १ - ३ / जनवरी-मार्च २००३
डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री का स्पष्ट अभिमत है कि जिन स्तम्भों पर सिंह की मूर्ति है, वे सभी स्तम्भ सम्राट् सम्प्रति के हैं और यदि उक्त सिंहस्तम्भ के निर्माता जैनधर्मानुयायी सम्राट् सम्प्रति हैं तो उक्त प्रतीकों की जैनप्रतीकों के रूप में स्वतः पुष्टि हो जायेगी तथा यह तथ्य स्पष्ट हो जायेगा कि उस काल में जैनधर्म अत्यन्त उत्कर्ष पर था और वर्तमान सारनाथ में जैन संस्कृति की गहरी जड़ें थीं।
सारनाथ से ईसा की सातवीं शती की भी एक जैन मूर्ति प्राप्त हुई है, जो मुद्रा में ध्यानस्थ है । ३०
वर्तमान में सारनाथ में धम्मेक स्तूप के बगल में एक दिगम्बर जैन मन्दिर है, जिसमें काले पाषाण की भगवान् श्रेयांसनाथ की ढाई फुट ऊँची मनोज्ञ पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा विक्रम संवत् १८८१ (सन् १८२४) में इलाहाबाद के निकटवर्ती क्षेत्र पभोसा में प्रतिष्ठित हुई थी और कालान्तर में भगवान् पार्श्वनाथ की जन्मभूमि भेलूपुर, वाराणसी से लाकर स्थापित की गयी है। इस प्रतिमा के आगे भगवान् श्रेयांसनाथ की एक श्वेतवर्ण तथा भगवान् पार्श्वनाथ की श्यामवर्ण प्रतिमा विराजमान है । वेदी के पीछे स्थित एक आलमारी में एक शिलाफलक में नन्दीश्वर चैत्यालय है, जिसमें ६० प्रतिमाएँ अङ्कित हैं। यह फलक भूगर्भ से प्राप्त हुआ है।
सम्प्रति दिगम्बर जैन मन्दिर की दक्षिण दिशा में पुरातत्त्व संग्रहालय एवं जैन धर्मशाला के मध्य स्थित जैन बगीची में भगवान् श्रेयांसनाथ की लगभग ११ फुट उत्तुङ्ग पद्मासन प्रतिमा की स्थापना की गई है। इस प्रतिमा का महामस्तकाभिषेक एवं बृहत् पूजन २४ नवम्बर २००२ को पूज्या गणिनीप्रमुख आर्यिकारत्न ज्ञानमती माता जी के ससंघ सान्निध्य में सम्पन्न हुआ है। इस अवसर पर काशी जैन समाज के अतिरिक्त देश के विभिन्न नगरों से पधारे अनेक गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।
इसी जैन बगीची में पुरातत्त्व संग्रहालय की पूर्वी दीवाल से सटी हुई भगवान् सुपार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभ, श्रेयांसनाथ और पार्श्वनाथ की चार पद्मासन प्रतिमायें भी चार पृथक्-पृथक् चबूतरों पर पहले से ही विराजमान हैं, जो प्राचीन हैं।
सारनाथ के ही समीप हिरामनपुर गाँव में एक श्वेताम्बर जैन मन्दिर है, जिसका निर्माण आचार्य जिनकुशलचन्द्रसूरि ने विक्रम संवत् १८५७ में कराया था। इस आशय का एक शिलालेख मन्दिर के प्रवेशद्वार पर लगा हुआ था, जो अब जीर्णोद्धार के समय लुप्त हो गया है। यहाँ भगवान् श्रेयांसनाथ की प्रतिमा मूलनायक के रूप में विराजमान है । मन्दिर के मध्यभाग में तीन खण्डों का संगमरमर ने निर्मित भव्य समवसरण है। मन्दिर के चारों कोनों पर भगवान् के च्यवन, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान कल्याणकों
चिह्न बने हैं। प्रवेशद्वार के बायीं ओर काशी-कोशल प्रदेशों के तीर्थोद्धारक आचार्य जिनकुशलचन्द्रसूरि की पाषाण प्रतिमा है। प्रवेशद्वार के बाहर एक छोटे चबूतरे पर
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