Book Title: Sramana 2003 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 67
________________ जिनभद्रसूरि Jain Education International For Private & Personal Use Only खरतरगच्छ-मुख्यपरम्परा जिनचन्द्रसूरि 'चतुर्थ' रत्नमूर्ति जयसागर उपा० दयाकमल कमलसंयमगणि वाचक पद्यमेरु समयप्रभ महो० सिद्धान्तरुचि . | (सुप्रसिद्ध (वि.सं.१५१२ में इनके वाचनार्थ । (वि.सं.१४७५ के पश्चात् । मेरुसुन्दर रचनाकार) शिवनन्दन कल्पसत्र की स्वर्णाक्षरी प्रति मतिवर्धन जिनभद्रसरिपट्टाभिषेकरास साधुतान (प्रसिद्ध रचनाकार) . लिखी गयी) के कर्ता) कमललाभ मेरुतिलक देवकीर्ति दयाकलश चरणधर्म देवरत्न (वि.सं. १५६६ में लीलावतीचौपाई के कर्ता) अमरमणिक्य धर्ममेरु (वि०सं० १६०४ में सुखदुःखवियाकसंधि साधुकीर्ति (सुप्रसिद्ध रचनाकार) के कर्ता) क्षमारंग कनकसोम वाचनाचार्य, रत्नलाभगणि कनकप्रभ लक्ष्मीप्रभ जल्ह (वि.सं. १६२५ के साधुसुन्दर रंगकुशल (वि.सं. १६४४-१६७० सोमकलशगणि पश्चात् साधुकीर्तिगुरुगीतम् के (कई रचनायें उपलब्ध) राजकीर्तिगणि विमलकीर्ति (वि.सं. १६८१ में अभिधान (वि.सं. १६४४ में के मध्य विभिन्न कृतियों पं. मानसिंह विजयहर्ष चिन्तामणिनाममाला के यतिधर्मगीत के रचयिता) के कर्ता) प्रतिलिपिकार) (वि.सं. १७१४ परिशि ट धर्मसिंह अपरनाम धर्मवर्धन पर्व के प्रतिलिपिकार (वि.सं.१७२६ में अट्टाइसलब्धिस्तवन के रचनाकार; अनेक रचनायें उपलब्ध) खरतरगच्छ-जिनभद्रसूरिशाखा का इतिहास : ६३ 1. १६४४ में के मध्य विभिन्न कनियों I रचयिता) www.jainelibrary.org

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