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११४ : श्रमण, वर्ष ५४, अंक १-३/जनवरी-मार्च २००३ बल दिया। ज्ञातव्य है कि उक्त दोनों संस्थायें परस्पर सहभागिता से अब तक विभिन्न ग्रन्थ प्रकाशित कर चुकी हैं तथा खरतरगच्छ का इतिहास नामक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ जो तीन खण्डों में है, उक्त दोनों संस्थाओं द्वारा संयुक्त रूप से शीघ्र प्रकाशित होने जा रहा है। श्री मेहता ने जैन नाटकों एवं जैन चित्र कथा के संयुक्त प्रकाशन हेतु भी प्रोजेक्ट तैयार करने का आग्रह किया।
मरुधरज्योति पू० साध्वी मणिप्रभा श्रीजी ससंघ विद्यापीठ में
खरतरगच्छीय प्रवर्तिनी स्व० विचक्षण श्रीजी म०सा० की सुशिष्या मरुधर ज्योति पू० साध्वी मणिप्रभा श्रीजी म.सा. अपनी सम्मेतशिखर यात्रा के दौरान ससंघ २८ फरवरी को प्रातः विद्यापीठ पधारी। आपके साथ साध्वी विद्युत्प्रभा श्रीजी, साध्वी हेमप्रज्ञा श्रीजी, साध्वी मृदुला श्रीजी, साध्वी अतुलप्रभा श्रीजी, साध्वी आत्मनिधि श्रीजी, साध्वी संयमनिधि श्रीजी, साध्वी अक्षयनिधि श्रीजी, साध्वी सद्भावना श्रीजी एवं मुनि महेन्द्रसागर तथा मुनि मनीषसागर भी थे।
विद्यापीठ में अपने दो दिन के प्रवास में साध्वी श्री मणिप्रभा श्रीजी ने संस्थान की विभिन्न गतिविधियों का सूक्ष्म निरीक्षण किया और यहाँ की सुव्यवस्था से अत्यधिक प्रभावित हुईं। आपके साथ पधारे दोनों मुनिजन श्री महेन्द्रसागर जी म० एवं श्री मनीषसागर जी म० अध्ययनार्थ विद्यापीठ में रुके हुए हैं। यहाँ उनका अध्ययन सुचारु रूप से चल रहा है। दो दिन रुकने के पश्चात् साध्वी जी महाराज एवं उनके साथ पधारी सभी साध्वियाँ पार्श्वनाथ जन्मस्थान मन्दिर, भेलूपुर गयीं, जहाँ लगभग १ सप्ताह रुकने के पश्चात् वे ससंघ सम्मेतशिखर के लिये रवाना हो गयीं।
पू० साध्वी ॐकार श्रीजी महाराज ठाणा १० का विद्यापीठ से विहार
पार्श्वचन्द्रगच्छीय साध्वी आर्या पू० ॐकार श्रीजी ठाणा १० ने वर्ष २००२ का चातुर्मास पूर्ण कर ७ मार्च को भेलूपुर स्थित पार्श्वनाथ जन्मभूमि मन्दिर के लिये प्रस्थान किया। आपके साथ साध्वी चन्द्रकला श्रीजी म०, साध्वी पुनीतकला श्रीजी म०, आर्या भव्यानन्द जी म०, आर्या संयमरसा श्रीजी म०, साध्वी सिद्धान्तरसा श्रीजी म०, साध्वी नमनकला श्रीजी० म०, साध्वी संवेगरसा श्रीजी म०, साध्वी शासनरसा श्रीजी म० एवं साध्वी मैत्रीकला श्रीजी म० थीं। साध्वी भव्यानन्द जी म०, साध्वी संवेगरसा श्रीजी, साध्वी सिद्धान्तरसा श्रीजी, साध्वी शासनरसा श्रीजी एवं साध्वी मैत्रीकला श्रीजी ने दो वर्ष तक निरन्तर विद्यापीठ में प्रवास करते हुए जैन साहित्य, दर्शन, व्याकरण, संस्कृत भाषा, जैन संघ के इतिहास आदि का विशद् अध्ययन किया साथ ही जैन विश्वभारती, लाडनूं द्वारा आयोजित स्नातक प्रथम वर्ष की परीक्षा भी उच्च अंकों से उत्तीर्ण की। साध्वी सिद्धान्तरसा जी म० ने इस परीक्षा में सर्वोच्च अंक प्राप्त
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