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१२७. : श्रमण, वर्ष ५४, अंक १-३/जनवरी-मार्च २००३ जयतिलकसरिकृत चतुर्हारावली चित्रस्वत:, श्रीयशोविजयगणिकृत आत्मसंवाद, केटलीक प्रकीर्ण लघु रचनाओ और 'वसो' न वसुधारा मन्दिर, ढूंक नोध एवं कई स्तुति एवं कविताएँ भी प्रकाशित हैं। कुछ लेख संस्कृत एवं कुछ गुजराती में हैं।
काव्यानुशासनम्, आचार्य हेमचन्द्र विरचित, प्रकाशक- प्रवचन प्रकाशक पूना, प्राप्तिस्थान- भूपेश भायाणी, ४८८ रविवार पेठ, पूना ४११००२, संस्करण वि०सं० २०५८, आकार- डिमाई, पृष्ठ ८+४०८+२५, मूल्य ८०/. दर्शन, व्याकरण एवं साहित्य के मूर्धन्य विद्वान् आचार्य हेमचन्द्र विरचित काव्यानुशासनम् साहित्य ग्रन्थ है। इसमें कुल ८ अध्याय हैं जिसमें काव्य प्रयोजन, काव्यलक्षण, रस, काव्यदोष, काव्य के गुण, अलंकारों का विवेचन, नायक-नायिका का चित्रण एवं दृश्य तथा श्रव्य काव्यों की विवेचना प्रस्तुत की गई है। सूत्र के साथ उसकी संस्कृत व्याख्या भी है। संस्कृत के विद्वानों के लिए यह संग्रहणीय है।
समरादित्यसंक्षेप, रचनाकार- श्री प्रद्युम्नसूरि, प्रकाशक- प्रवचन प्रकाशन-पूना, प्राप्तिस्थान- भूपेश थायाणी ४८८ शनिवार पेठ, पूना ४११००२ , संस्करण २००२ आकार- डिमाई, पृष्ठ १२४, मूल्य ९०/
श्री प्रद्युम्नसूरिकृत समरादित्यसंक्षेप जैन साहित्य के उत्कृष्ट ग्रन्थों में से एक है। मूल ग्रन्थ प्राकृत में है, जो गद्य प्रधान है। प्रस्तुत ग्रन्थ संस्कृत में है और यह पद्य में है। कुल ९ अध्यायों में विभक्त इसके सम्पादक हर्मन जैकोबी हैं। पुनः सम्पादकत्व मुनि प्रशमरति विजय जी ने किया है। संस्कृत साहित्य के विद्वानों के लिए यह ग्रन्थ उपयोगी बन पड़ा है।
प्राचीन बौद्ध एवं जैन तीर्थ (स्थापत्य कला के विशेष सन्दर्भ में), लेखकडॉ० राजेश कुमार सिंह, प्रकाशक- मिश्रा ट्रेडिंग कारपोरेशन, टी-२१-ए, किला कॉलोनी, राजघाट वाराणसी, संस्करण प्रथम २००२, आकार-डिमाई, पृष्ठ २२४, मूल्य २५०/___'प्राचीन जैन और बौद्ध तीर्थ' (स्थापत्य कला के विशेष सन्दर्भ में) को स्थापत्य कला की एक उत्कृष्ट रचनाओं में एक मानी जाय तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस पुस्तक में लेखक ने जैन एवं बौद्ध तीर्थों की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं कलात्मक विवेचन प्रस्तुत किया है। इतिहास में मतभेदों का होना स्वाभाविक है। खासकर प्राचीन इतिहास में। किन्तु लेखक ने उचित सन्दर्भ द्वारा जैन एवं बौद्ध तीर्थों का सही मूल्यांकन प्रस्तुत किया है। यह पुस्तक विद्वद्जनों के साथ शोधार्थियों के लिए अत्यन्त ही उपयोगी है।
- राघवेन्द्र पाण्डेय, शोधछात्र, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी
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