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धूलिया से प्राप्त शीतलनाथ की विशिष्ट प्रतिमा :
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व्यवसाय के निमित्त मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में बस गया है, आज भी स्वयं को कंधारी ओसवाल कहता है। यह भी ज्ञातव्य है कि इस कंधार से धूलिया के निकट स्थित वह स्थान, जहां से प्रतिमा प्राप्त हुई है, लगभग २५० कि०मी० से ज्यादा दूर नहीं है अत: उक्त प्रतिमालेख में उल्लिखित कंधारान्वय दक्षिण गुजरात में स्थित गंधार से सम्बन्धित है और इस सम्बन्ध में कोई शंका नहीं रह जाती है। यद्यपि अभी तक कोई साहित्यिक या अन्य किसी अभिलेखीय साक्ष्यों में कंधारान्वय का उल्लेख न मिलने से यह बतला पाना कठिन है कि यह श्रावकों का ही एक संगठन था या इसमें कोई मुनि या आचार्य आदि भी हुए हैं, इस सम्बन्ध में अभी भी गहराई से खोज एवं चिन्तन की आवश्यकता है। यद्यपि जब तक कोई अन्य ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं होता है यही मानना होगा कि यह 'कन्धारान्वय' वस्तुतः श्रावकों के एक वर्ग का ही सूचक था जो मूलत: गन्धार (दक्षिण गुजरात) के निवासी थे।
HRSONS
KANAINS
मतदाता
उगाहीयकंधराया व, वाश्यास प्रतिमा का
रासाजन मुलयामा
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शीतलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख का मूल पाठ
अभिलेख की भाषा - यद्यपि उक्त प्रतिमालेख की भाषा संस्कृत है किन्तु उसमें 'यसे' शब्द की उपस्थिति से यह सूचित होता है यह लेख महाराष्ट्र में ही लिखा गया है। जहां तक मेरा अनुमान है 'यसे' वर्तमान मराठी भाषा के 'यांस' का ही कोई प्राचीन रूप होगा और इसका 'यसे' का अर्थ 'यह' या 'इस' होगा।
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