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________________ धूलिया से प्राप्त शीतलनाथ की विशिष्ट प्रतिमा : ५३ व्यवसाय के निमित्त मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में बस गया है, आज भी स्वयं को कंधारी ओसवाल कहता है। यह भी ज्ञातव्य है कि इस कंधार से धूलिया के निकट स्थित वह स्थान, जहां से प्रतिमा प्राप्त हुई है, लगभग २५० कि०मी० से ज्यादा दूर नहीं है अत: उक्त प्रतिमालेख में उल्लिखित कंधारान्वय दक्षिण गुजरात में स्थित गंधार से सम्बन्धित है और इस सम्बन्ध में कोई शंका नहीं रह जाती है। यद्यपि अभी तक कोई साहित्यिक या अन्य किसी अभिलेखीय साक्ष्यों में कंधारान्वय का उल्लेख न मिलने से यह बतला पाना कठिन है कि यह श्रावकों का ही एक संगठन था या इसमें कोई मुनि या आचार्य आदि भी हुए हैं, इस सम्बन्ध में अभी भी गहराई से खोज एवं चिन्तन की आवश्यकता है। यद्यपि जब तक कोई अन्य ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं होता है यही मानना होगा कि यह 'कन्धारान्वय' वस्तुतः श्रावकों के एक वर्ग का ही सूचक था जो मूलत: गन्धार (दक्षिण गुजरात) के निवासी थे। HRSONS KANAINS मतदाता उगाहीयकंधराया व, वाश्यास प्रतिमा का रासाजन मुलयामा THS. More शीतलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख का मूल पाठ अभिलेख की भाषा - यद्यपि उक्त प्रतिमालेख की भाषा संस्कृत है किन्तु उसमें 'यसे' शब्द की उपस्थिति से यह सूचित होता है यह लेख महाराष्ट्र में ही लिखा गया है। जहां तक मेरा अनुमान है 'यसे' वर्तमान मराठी भाषा के 'यांस' का ही कोई प्राचीन रूप होगा और इसका 'यसे' का अर्थ 'यह' या 'इस' होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525048
Book TitleSramana 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2003
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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