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३२ : श्रमण, वर्ष ५४, अंक १-३/जनवरी-मार्च २००३ आपके स्वर्गवास के पश्चात् मुनि श्री रोड़मलजी संघ के आचार्य पद पर पदासीन हुये। आचार्य श्री रोड़मलजी
आपका जन्म वि०सं० १८०४ में नाथद्वारा के मध्य देवर (देपुर) नामक ग्राम में हुआ। पिता का नाम श्री डूंगरजी और माता का नाम श्रीमती राजीबाई था। वि०सं० १८२४ के वैशाख में बीस वर्ष की अवस्था में देवर ग्राम में ही मुनि श्री हरिजी स्वामी के शिष्यत्व में आपने दीक्षा ग्रहण की। मुनि श्री हरिजी स्वामी के शिष्यत्व में दीक्षित होने के सम्बन्ध में मुनि श्री सौभाग्यमुनि जी 'कुमुद' का मानना है कि मुनि श्री रोड़मलजी के गुरु मुनि श्री पूरणमलजी थे न कि मुनि श्री हरिस्वामीजी। मुनि श्री के इस कथन की पुष्टि वि०सं० १९३८ में गुलाबचन्दजी द्वारा लिखित पट्टावली में 'पूरोजी का रोड़ीदास' किये गये उल्लेख से भी होती है।
आपने अपने जीवनकाल में ४३ मासखमण, २३० अठाई, १९५ पंचोला, २५८ चौला, ३४५ तेला, ९९० बेला और १५०० उपवास किये। अपने संयमजीवन में आप बहुत दिनों तक एकाकी विचरण करते रहे किन्तु एकाकी विचरण करने के कारण का कोई स्पष्ट उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। श्री सौभाग्यमुनिजी 'कुमुद का मानना है कि अन्य मुनिराजों का देहावसान हो गया हो या कोई दीक्षार्थी उपलब्ध न हुआ हो, अत: उन्हें एकाकी विहार करना पड़ा हो। आपका विहार क्षेत्र कोटा, आमेट, सनवाड़, नाथद्वारा, उदयपुर आदि रहा। मेवाड़ से बाहर विहार करने का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है और न ही आपने वहाँ कितने चातुर्मास किये आदि की जानकारी उपलब्ध होती है। हाँ! इतना स्पष्ट उल्लेख प्राप्त होता है कि आपने अपने संयमजीवन के अन्तिम नौ वर्ष उदयपुर में स्थिरवास के रूप में बिताये। वि०सं० १८६१ में आपका स्वर्गवास हुआ। मुनिश्री नृसिंहदासजी आपके प्रमुख शिष्य थे। आचार्य श्री नृसिंहदासजी
आचार्य श्री रोड़मलजी के स्वर्गस्थ होने के पश्चात् उनके पाट पर मुनि श्री नृसिंहदासजी विराजित हुये । आपका जन्म भीलवाड़ा जिलान्तर्गत रामपुर ग्राम में हुआ। आपकी जन्मतिथि का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है। आपकी माता का नाम श्रीमती गुमानबाई और पिता का नाम श्री गुलाबचन्दजी खत्री था। वि०सं० १८५२ मार्गशीर्ष कृष्णा नवमी के दिन लावा (सरदारगढ़) में आचार्य श्री रोड़मलजी के शिष्यत्व में आपने दीक्षा अंगीकार की। दीक्षा के समय आप गृहस्थावस्था में थे। मुनि श्री सौभाग्यमलजी 'कुमुद' के अनुसार दीक्षा के समय आपकी उम्र २०-२५ वर्ष की थी। इस आधार पर आपकी जन्म-तिथि वि०सं०
*. यह परम्परा मुनिश्री हस्तीमलजी म.सा० द्वारा लिखित 'पूज्य गुरुदेव श्री माँगीलालजी
म० : दिव्य व्यक्तित्व' पर आधारित है।
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