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३४ : श्रमण, वर्ष ५४, अंक १३/जनवरी-मार्च २००३ पट्टधर स्वीकार किया है। मुनि श्री ऋषभदासजी के समय लिखी गयी संक्षिप्त और बड़ी पट्टावलियों में श्री मानजी स्वामी का कोई उल्लेख नहीं है। अत: ऐसा अनुमान किया जा सकता है कि श्री मानजी स्वामी और तपस्वी श्री सूरजमलजी के संघाड़े अलग-अलग रहे हों। श्री मानमलजी स्वामी के बाद एक वर्ष तक संघ की बागडोर मुनि श्री ऋषभदासजी के पास रही- ऐसा उल्लेख मिलता है। मुनि श्री सूरजमलजी
आपका जन्म वि०सं० १८५२ में देवगढ़ के कालेरिया ग्राम में हुआ। आपके पिता का नाम श्री थानजी और माता का नाम श्रीमती चन्दूबाई था। वि०सं० १८७२ चैत्र कृष्णा त्रयोदशी के दिन आचार्य श्री नृसिंहदासजी के शिष्यत्व में आपने दीक्षा ग्रहण की। दीक्षोपरान्त आपने १५ दिन, ३५ दिन और ३७ दिन के तप के साथ एक बार पाँच महीने का दीर्घ तप भी किया था। आपके द्वारा किये गये तपों का वर्णन श्री ऋषभदासजी द्वारा लिखित 'रेसी लावणी' में मिलता है। आपने ३६ वर्ष निर्मल संयमजीवन का पालन किया। वि०सं० १९०८ ज्येष्ठ शुक्ला अष्टमी को आपका स्वर्गवास हो गया। मुनि श्री ऋषभदासजी
आपका जन्म कब, कहाँ, और किसके यहाँ हुआ? इसका कोई ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं होता है । जहाँ तक दीक्षा समय और दीक्षा गुरु का प्रश्न है तो इसकी भी स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है। श्री सौभाग्यमुनिजी 'कुमुद' ने दो पट्टावलियों के आधार पर आपको मुनि श्री सूरजमलजो का शिष्य माना है, किन्तु यह समुचित नहीं जान पड़ता, क्योंकि पट्टावलियों में पट्ट परम्परा दी रहती है न कि शिष्य परम्परा। हाँ! उनका यह कथन कि मुनि श्री ऋषभदासजी पूज्य श्री नृसिंहदासजी के शिष्य हुये हों तो भी तपस्वी श्री सूरजमलजी के प्रति वे शिष्यभाव से ही अनन्यवत् बरतते हों, ऐसा सुनिश्चित अनुमान होता है- समुचित जान पड़ता है । आपका स्वर्गवास वि०सं० १९४३ में नाथद्वारा में हुआ, यह उल्लेख वि०सं० १९६८ में छपी एक पुस्तिका- 'पूज्य पद प्रदान करने का ओच्छन' में मिलता है।
आप द्वारा रचित कृतियों के नाम इस प्रकार हैंकृति
रचना वर्ष स्थान आवे जिनराज तोरण पर आवे वि०सं० १९१२ रतलाम अज्ञानी थे प्रभु न पिछाण्यो रे वि०सं० १९१२ खाचरौंद चतुर नर सतगुर ले सरणां
वि०सं० १९१२ फूलवन्ती नी ढाल देव दिन की दोय ढाल सागर सेठ नी ढाल
वि० सं० १९०४ रायपुर (मेवाड़)
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