Book Title: Sramana 2003 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 53
________________ धर्म और धर्मान्धता : ४९ और अन्त में अपने पति से उसने आग्रह किया "महाराज! आप संन्यासी हैं, किन्तु आपके झोले में तो वे सभी चीजें हैं जो मेरे घर में हैं। इसमें कमी है तो सिर्फ मेरी। अत: आप क्यों नहीं मुझे भी इस झोले में डाल लेते हैं।" धर्मान्ध साधु लौटकर अपने गांव में भले ही न पहुँचता हो, किन्तु जिन सांसारिक प्रपञ्चों का त्याग करके वह संन्यासी बनता है, वे पुन: उसके साथ हो जाते हैं और उसका जीवन प्राय: उसी तरह का हो जाता है जिस तरह गृहस्थ का जीवन होता है। बड़े-बड़े महन्तों एवं संघाधिपतियों की जीवनचर्या और व्यवस्था को देखेंगे तो आप पायेंगे कि उनके साथ सुख-सुविधा के वे सभी साधन प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हैं जो एक गृहस्थ के पास होते हैं। बल्कि सामान्य परिवार में उतनी सुविधाएं होती भी नहीं है जितनी साधुओं के पास होती हैं। हाँ! साधु और गृहस्थ में थोड़ा अन्तर यह होता है कि गृहस्थ सांसारिक सुख को खुलकर स्वतन्त्रतापूर्वक भोगता है जबकि साधु जीवन के प्रतिबन्धों को देखते हुए, लोक-लज्जा से डरते हुए लुकछुपकर सांसारिक सुख का आनन्द लेता है, जो उसके लिए ही नहीं बल्कि उसके अनुयायियों के लिए भी घातक होता है। धर्मान्ध धर्मनेता तथा राजनेता एक जैसे ही होते हैं। दोनों सुविधाभोगी तथा समाज के शोषक होते हैं। राजनेता समाज के विकास के लिए लम्बे-लम्बे भाषण देता है लेकिन सही अर्थ में वह समाज को अविकसित अवस्था में ही रखना चाहता है ताकि लोग उसके लिए हाथ उठा सकें और नेता के रूप में उसे सम्मानित करते रहें। उसी प्रकार धर्मान्ध धर्मनेता भी नहीं चाहता है कि धर्म का विकास हो और लोग धर्म की वास्तविकता को जानें। वह तो अपने अनुयायियों को यह बताता है कि जो कुछ वह कह रहा है वही शास्त्र है, धार्मिक सिद्धान्त है और उसके वचन के अतिरिक्त जो कुछ भी है वह अधर्म है। धर्मपथ-प्रदर्शक की धर्मान्धता के कारण सम्पूर्ण सम्प्रदाय धर्मान्ध होता है; किन्तु पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा धर्मान्ध होती हैं। धर्मान्धता के कारण कभी-कभी वे अपने परिवार वालों की अवहेलना कर देती हैं। कुछ महिलाओं को देखा जाता है कि अपने पति तथा परिवार के लोगों को भोजन कराते समय उनके चेहरे पर मलीनता होती है, व्यवहार में रूखापन होता है; किन्तु जब कोई परिचित साधु या संन्यासी उनके दरवाजे पर आ जाता है तो उसे वे साधारण व्यक्ति नहीं बल्कि राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध आदि के रूपों में देखती हैं। उसे वे प्रसन्नतापूर्वक अपनी पाकशाला तक ले जाती हैं और अति विनम्रता के साथ साधु के पात्रों में भोज्य सामग्रियाँ रखती हैं। वे कभी हँसती हैं, कभी मुस्कुराती हैं और बार-बार विभिन्न सामग्रियों में से कुछ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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