Book Title: Sramana 2003 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 54
________________ ५० : श्रमण, वर्ष ५४, अंक १-३/जनवरी-मार्च २००३ और लेने के लिए आग्रह करती हैं उन्हें लगता है कि मात्र साधु भेषधारी व्यक्ति को भोजन करा देने से ही उन्हें संसार की सभी उपलब्धियाँ मिल जायेंगी या वे भवसागर को पार कर जायेंगी। घर वालों के प्रति उनका कोई कर्तव्य नहीं है, परन्तु उन्हें भूलना नहीं चाहिए कि घर में चिराग जलाने के बाद ही मन्दिर में चिराग जलाना श्रेयष्कर होता है। घर में यदि अंधेरा है तो मन्दिर में उजाला करना कोई अर्थ नहीं रखता। परिवार की तो बात ही क्या ईसा मसीह ने पड़ोसी के प्रति सद्भाव एवं स्नेह जताने की बात कही है। उन्होंने कहा है कि “यदि तुम ईश्वरोपासना हेतु चर्च में जाने के लिए तैयार हो और तुम्हें जानकारी होती है कि तुम्हारा पड़ोसी तुमसे किसी कारण नाराज है, असन्तुष्ट है तो चर्च जाने के बदले तुम उस पड़ोसी के पास जाओ, उसे प्रसन्न करो, फिर चर्च में जाओ।" धर्मान्ध महिलाओं को महात्मा ईसा मसीह के उक्त कथन को अच्छी तरह समझना चाहिए। कार्ल मार्क्स की प्रसिद्ध उक्ति है- "धर्म एक नशा है क्योंकि जिस प्रकार नशा सेवन से व्यक्ति भ्रमित हो जाता है, उसकी संज्ञानता विलुप्त हो जाती है,उसी प्रकार धर्म के प्रभाव से कोई व्यक्ति भ्रमित हो जाता है तथा उसे अपने जीवन की वास्तविकता का बोध नहीं हो पाता है। मार्क्स के इस कथन में सुधार की आवश्यकता है। वास्तव में धर्म किसी को भ्रमित नहीं करता है। धर्म तो जीवन के मूल्यों का बोध कराता है। धर्मान्धता से अवश्य ही व्यक्ति भ्रमित हो जाता है, क्योंकि उसकी आँखें खुली होकर भी खुली नहीं होती हैं। उसके दिल, दिमाग अपने होते हुए भी अपने नहीं रह जाते हैं। वह वही देखता है, वही सुनता है, वही कहता है, वही करता है जो उसके धर्मान्ध धर्म-पथ-प्रदर्शक उसे दिखाते हैं, सुनाते हैं तथा उससे कहलवाते हैं, करवाते हैं। सन्दर्भ : १. श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय ३. 2. Religion is the elevation of the spirit into region where hope passes into conquest, intemiable effort and endeavour into peace and rest. Philosophy of Religion, p. 284. बी०एन० सिन्हा, धर्म दर्शन, पृ० ११. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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