Book Title: Sramana 2003 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 44
________________ ४० : श्रमण, वर्ष ५४, अंक १३/जनवरी-मार्च २००३ के शासन को संचालित किया और ६ वर्षों तक श्रमण संघ के मन्त्री पद का निर्वहन किया। अन्तिम ५ वर्ष आपने देलवाड़ा में स्थिरवास के रूप में बिताया। वि०सं० २०१५ श्रावण शुक्ला चतुर्दशी को सायं ६.४५ बजे आपका स्वर्गवास हो गया। पंजाब रावलपिण्डी (वर्तमान में पाकिस्तान में), महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, गुजरात तथा दक्षिण प्रदेश आपका विहार क्षेत्र रहा। मुनि श्री अम्बालालजी और मुनि श्री भारमलजी आपके प्रमुख शिष्य थे । मुनि श्री भारमलजी आपका जन्म वि०सं० १९५० में मालवी के निकट सिन्दू कस्बे में हुआ। आपके पिता का नाम श्री भैरुलालजी बड़ाला व माता का नाम श्रीमती हीराबाई था। २० वर्ष की अवस्था में वि०सं० १९७० में पूज्य आचार्य श्री मोतीलालजी के सानिध्य में थामला ग्राम में आपने दीक्षा धारण की। ४८ वर्ष संयमधारणा का पालन करके वि०सं० २०१८ श्रावण अमावस्या को राजकरेड़ा में आपका समाधिपूर्वक स्वर्गवास हो गया। प्रवर्तक श्री आम्बालालजी आपका जन्म वि०सं० १९६२ ज्येष्ठ शुक्ला तृतीया मंगलवार को मेवाड़ के थामला में हुआ। नाम हम्मीरमल रखा गया। छः वर्ष बाद जब आप अपने चाचा के यहाँ मावली आ गये तब आपका नया नामकरण हुआ- अम्बालाल। आपके पिता का नाम सेठ किशोरीलालजी सोनी व माता का नाम श्रीमती प्यारीबाई था। हथियाना में आचार्य श्री मोतीलालजी से आपका समागम हुआ। मुनि श्री भारमलजी आपके ममेरे भाई थे। वि०सं० १९८२ मार्गशीर्ष शुक्ला अष्टमी दिन सोमवार को भादसोड़ा से दस मील दूर मंगलवाड़ा में आचार्य श्री मोतीलालजी के हाथों आप दीक्षित हुए। मंगलवाड़ा में आपकी छोटी दीक्षा हुई। छोटी दीक्षा के सात दिन बाद भादसोड़ा में आपकी बड़ी दीक्षा हुई। दीक्षोपरान्त आपने थोकड़ो व शास्त्रों का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया। रचनात्मक कार्यों में आपकी विशेष रुचि थी। सनवाड़ में भगवान् महावीर के २५ वें निर्वाण शताब्दी के अवसर पर २५०० व्यक्तियों को आपने मांस-मदिरा का त्याग करवाया। आप श्रमण संघ के प्रवर्तक पद के अतिरिक्त भी कई पदवियों से विभूषित थे, जैसे- 'मेवाड़ मंत्री', 'मेवाड़ संघ शिरोमणि', 'मेवाड़ मुकुट' 'मेवाड़ के मूर्धन्य संत', 'मेवाड़रत्न', 'मेवाड़ गच्छमणि', 'मेवाड़ मार्तण्ड' आदि। आपका प्रथम चातुर्मास वि०सं० १९८३ में जयपुर व अन्तिम चातुर्मास वि०सं० २०५० में मालवी में हुआ। राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, बम्बई, दिल्ली, उत्तरप्रदेश आदि आपका विहार क्षेत्र रहा है। वि०सं० २०५१ (१५.१.१९९४) में फतेहनगर (मेवाड़) में आपका स्वर्गवास हो गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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