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धर्म और धर्मान्धता : : ४५ सब से नहीं। यह विधेयात्मक पद्धति है। इसका माध्यम ज्ञान होता है। ज्ञानी का विवेचन करते हुए उपनिषदों में कहा गया है कि ज्ञानी वह होता है जो अपने को सब में तथा सबको अपने में देखता है। ज्ञानी को यह अनुभूति होती है कि जो वह है, वही सब हैं और जो सब है वही वह है । इस तरह वह सर्वग्रहण के आधार पर धर्मानुभूति प्राप्त करता है। बल्कि ऐसी अनुभूति ही धर्मानुभूति है । धर्मानुभूति के बिना धर्म का बोध असम्भव है। धर्मानुभूति रहस्यात्मक एवं अनिर्वचनीय होती है। इसे किसी अन्य व्यक्ति को दिया या समझाया नहीं जा सकता है। इसे वही समझता है जिसे इसकी अनुभूति होती है, जैसे गुड़ का स्वाद गूंगा ग्रहण तो करता है; किन्तु वह किसी को बता नहीं सकता है कि गुड़ कैसा होता है ?
धर्मान्धता
सच्ची धार्मिक दृष्टि के अभाव को धर्मान्धता की संज्ञा दी जाती है । शङ्कराचार्य ने माना है कि माया के दो कार्य हैं- आवरण और विक्षेप । माया जब अपने प्रभाव से यथार्थ को छुपा देती है तो उसका वह कार्य आवरण कहलाता है । जब द्रष्टा के समक्ष वह अयथार्थ को प्रस्तुत कर देती है तब उसे विक्षेप कहते हैं। ठीक उसी प्रकार धर्मान्धता भी अपने आवरण और विक्षेप द्वारा लोगों को भ्रमित कर देती है। धर्मान्धता कारण व्यक्ति धर्म के वास्तविक रूप को नहीं देख पाता है और जो अधर्म है उसी धर्म समझ बैठता है। इन्हें धर्मान्धता का आवरण-विक्षेप कहना कोई गलत न होगा।
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सामान्य अन्धापन के कारण व्यक्ति वस्तुओं को नहीं देख पाता है, उसी प्रकार धर्मान्धता के कारण कोई व्यक्ति धर्म को नहीं समझ पाता है; किन्तु सामान्य अन्धापन और धर्मान्धता में बहुत अन्तर है। सामान्य अन्धापन तो व्यक्ति तक ही सीमित होता है । किसी अन्धा व्यक्ति के साथ रहने वाला अन्धा नहीं हो जाता है; किन्तु धर्मान्धता तो संक्रामक रोग की तरह फैलती है। महाभारत की वह कथा बहुत प्रसिद्ध है जिसमें यह बताया गया है कि जब धृतराष्ट्र का विवाह हुआ तो उनकी पत्नी ने देखा कि उनके पति अन्धे हैं जिसके फलस्वरूप संसार की किसी वस्तु को नहीं देख सकते हैं यानी रूप का आनंन्द वे नहीं ले सकते हैं अतः उनके लिए (पत्नी के लिए) यह उचित नहीं है कि वे सुन्दरता का आनन्द लें। ऐसा सोचकर उन्होंने अपनी आँखों पर पट्टी बांध ली। करीब-करीब ऐसी ही बात धर्मान्धता के साथ देखी जाती है। यदि किसी की पत्नी अपने जीवन के प्रारम्भ से ही धर्मान्ध है तो धीरे-धीरे वह व्यक्ति स्वयं भी धर्मान्ध हो जाता है। यदि पति धर्मान्ध है तो संगति के प्रभाव से उसकी पत्नी भी धर्मान्ध हो जाती है। यदि पति-पत्नी दोनों ने ही अपनी-अपनी आँखों पर धर्मान्धता की पट्टी बांध ली है तो अधिक सम्भावना रहती है उनकी सन्तानें भी धर्मान्ध हो जाएं। इस प्रकार धर्मान्धता संक्रामक रोग की तरह फैलती है। संक्रामक रोग तो उचित उपचार
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