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३८ : श्रमण, वर्ष ५४, अंक १३/जनवरी-मार्च २००३ हो गये । जहाँ तक मोतीलालजी के आचार्य बनने की बात है तो इस सम्बन्ध में मुनि हस्तीमलजी ने 'पूज्य गुरुदेव श्री माँगीलालजी म०: दिव्य व्यक्तित्व' नामक पुस्तक में लिखा है कि मुनि श्री मोतीलालजी ने जीवनपर्यन्त पूज्य पद लेने का त्याग कर रखा था। इसलिए आचार्य श्री एकलिङ्गदासजी ने एक पत्र मुनि श्री माँगीलालजी को पूज्य पद देने के लिए अपने हस्ताक्षरों सहित लिखा था और साक्षी के रूप में महासती गोदावतीजी एवं नीमचवाले श्रावकों के हस्ताक्षर भी उस पत्र पर करवाये थे। दूसरी
ओर 'पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी अभिनन्दन ग्रन्थ' में उल्लेख आया है कि आचार्य पद पर श्री मोतीलालजी और युवाचार्य पद पर मुनि श्री माँगीलालजी को निर्विरोध मनोनीत किया गया। ये दोनो कथन एक-दूसरे के विपरीत प्रतीत होते हैं। अत: इन दोनों मान्यताओं के विवाद में जाकर यही कहा जा सकता है कि आचार्य श्री एकलिङ्गदासजी के पश्चात् संघ दो भागों में विभक्त हो गया। जिसमें एक की बागडोर आचार्य मोतीलाल जी ने सम्भाली तो दूसरे की मुनिश्री माँगीलाल जी ने। वर्तमान में दोनों परम्परायें श्रमण संघ में विलीन हो गयी हैं। वि०सं० २०२० ज्येष्ठ शुक्लपक्ष में सहाड़ा में अचानक आपका (माँगीलालजी) स्वर्गवास हो गया।
आपके तीन प्रमुख शिष्य हुये पण्डितरत्न श्री हस्तीमलजी मेवाड़ी, श्री पुष्करमुनिजी और श्री कन्हैयालालजी। आप द्वारा किये गये चातुर्मासों की संक्षिप्त सूची इस प्रकार है
स्थान
वि० सं० १९७८ १९७९ १९८० १९८१ १९८२ १९८३ १९८४ १९८५ १९८६ १९८७ १९८८ १९८९ १९९०
स्थान देलवाड़ा रायपुर देवगढ़ (मदारिया) कुंवारिया अकोला ऊंटाला(बल्लभनगर) सादड़ी रायपुर मालवी ऊंटाला लावा (सरदारगढ) देवगढ़ (मदारिया) पड़ासोली
वि० सं० १९९१ १९९२ १९९३ १९९४ १९९५ १९९६ १९९७ १९९८ १९९९ २००० २००१ २००२ २००३
थामला सरदारगढ़ देलवाड़ा खमणोर सादड़ी गोगुन्दा सनवाड़ सहाड़ा नाई (उदयपुर) बाघपुरा (झालावाड) नाईनगर कुंवारिया मसूदा (अजमेर)
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