Book Title: Sramana 1992 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 21
________________ डॉ. जगदीशचन्द्र जैन (ई) इन्द्र, वरुण, मित्र, नासत्य ये चारों ऋग्वेदिक देवता, किंचित् परिवर्तनपूर्वक लगभग ईसा पूर्व 14वीं शताब्दी में बोधाज - कोइ ( एशिया माइनर ) के अभिलेखों में उपलब्ध । हिट्टी भाषा में इन्द्र का इन- त-र और वरुण का उ-रु-वन-अ के रूप में उल्लेख । वस्तुतः जैसे कहा जा चुका है, हमारी ऐतिहासिक एवं प्रागैतिहासिक सामाजिक संस्कृति बहुत कर जन-जातियों की संस्कृति पर अवलम्बित है। जन-जाति के गण जो कुछ मेहनत-मशक्कत से उपलब्ध होता, उसे बाँट-बाँटकर खाते, सहयोगपूर्वक मिलजुलकर रहते, भाईचारे का बर्ताव करते, एक-दूसरे को कम से कम कष्ट पहुंचाते। अहिंसा, करुणा एवं मैत्री की उनकी यह प्रवृति हमें विरासत में मिली है जिसकी रक्षा के लिए आज भी हम प्राण पण से प्रयत्नशील हैं। देश की एकता, प्रभुता, अखंडता एवं सत्यनिष्ठा का नारा आज भी हमें सुनाई देता है । हमारे पूर्वजों ने अत्यन्त परिश्रमपूर्वक तत्कालीन समाज के जिन मूल्यों को प्रतिष्ठित किया है, वे मूल्य और वह परम्परा आज भी हमारे लिए उतनी ही गुणकारी है जितनी पहले थी, बल्कि उससे भी अधिक । - सन्दर्भ-ग्रन्थ 1. 2. द वैदिक एज, जिल्द । (हिस्ट्री एण्ड कल्चर ऑफ द इंडियन पीपल) सुनीतिकुमार चटर्जी, ओरिजिन एण्ड डिक्लैपमेंट ऑफ बंगाली लैंगवेज डी. डी. कोसाम्बी, इंडियन हिस्ट्री (ऐन इंट्रोडक्शन टू ) जगदीशचन्द्र जैन, प्राकृत नैरेटिव लिटरेचर - ओरिजिन एण्ड ग्रोथ 5. जगदीशचन्द्र जैन, भारतीय दर्शन - एक नयी दृष्टि 3. 4. 19 भारतीय समाज और ऋषभदेव संगोष्ठी १०-११ मार्च, १६६१ । ऋषभदेव प्रतिष्ठान एवं बौद्ध विद्या विभाग (दिल्ली विश्वविद्यालय) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित Jain Education International -- For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82