________________
धर्म चन्द जैन
निकों ने आगम एवं व्यवहार में भी प्रमाण-चिन्तन को स्थान दिया है। बौद्ध दार्शनिकों की ष्टि व्यावहारिक कम एवं तार्किक अधिक रही है। वे 'प्रामाण्यं व्यवहारेण का सिद्धान्त तिपादित करके भी विज्ञानवाद एवं क्षणिकवाद का अनुगमन करने के कारण पूर्ण व्यावहारिक नहीं हो सके। उनका तर्क एवं व्यवहार भी परमार्थ के लिए है। - इसमें संदेह नहीं कि जैन दार्शनिकों ने बौद्ध प्रमाण-मीमांसा में पाण्डित्य प्राप्त कर उनसे कुछ ग्रहण भी किया है एवं उनके मत का कुशलता पूर्वक निरसन भी किया है। बौद्ध दार्शनिक शान्तरक्षित एवं अर्चट भी जैन प्रमाण-मीमांसा एवं तत्त्वमीमांसा से प्रभावित होकर उसका निरसन करने के लिए तत्पर होते हैं। वस्तुतः जैन एवं बौद्ध दोनों दर्शन श्रमण परम्परा के सन्दर्भ में एक होकर भी प्रमाण-प्रतिष्ठा के परिप्रेक्ष्य में मतभेद रखते हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org