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श्रीमती मंजुला भट्टाचार्य
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प्रत्येक व्यक्ति अपने साधना के बल पर परमात्मा के स्वरूप को प्राप्त कर सकता है। उनकी ईश्वरवाद की समीक्षा में मुख्य रूप से यह बात भी निहित है कि वे मनुष्य को ईश्वर का दास बनाने की अपेक्षा उसे स्वयं ईश्वर बना देते हैं। वे भक्त को भक्त बनने के स्थान पर भगवान बनने की प्रेरणा देते हैं। उनके इन विचारों को एक उर्दू शायर ने बहुत सुन्दर रूप में प्रस्तुत किया है। वह लिखता है कि --
ईसा की बदबख्ती अंदाज से बाहर है।
कमबख्त खुदा होकर बंदा नजर आता है।। यद्यपि जैन दार्शनिकों ने ईश्वर के कर्तत्व की समीक्षा की है, किन्तु हरिभद्र जैसे कुछ जैन आचार्य ऐसे भी हुए हैं, जो अपेक्षा विशेष से ईश्वर के सृष्टि कर्तृत्व को जैन विचारों से समन्विंत करते हैं। वे कहते हैं कि प्रत्येक आत्मा परमात्मा है और प्रत्येक आत्मा अपनी भव-परम्परा अथवा संसार का निर्माता है और इस रूप में वह संसार (सृष्टि) का कर्ता भी है। इस प्रकार जैन दार्शनिकों ने न केवल ईश्वर के सृष्टि कर्तत्व की समीक्षा की है किन्तु जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में उसे समन्वित भी किया है और यही उनकी विशेषता है।
शोध छात्रा - पार्श्वनाथ शोध पीठ, वाराणसी-5.
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