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पुस्तक-समीक्षा
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इसके कारण ये रचनाएं भक्ति रस का आनन्द देने में भी पूर्ण समर्थ है। भाषा सुबोध एवं सरल है। आध्यत्मरसिकों के लिए कृति पठनीय है।
आधनिक विज्ञान एवं गीता का ब्रहम, लेखक-- विजयशंकर राय, प्रकाशक-- ज्ञान-विज्ञान शोध संस्थान, अभिनव काम्पलेक्स, जयप्रकाश कालोनी (कार्यालय के पास ), अधारताल वार्ड, जबलपुर (म.प्र.), पिन 482002, ई. 1992, मूल्य- 60/%D । प्रस्तुत कृति को अध्यायों के स्थान पर खण्डों में विभक्त किया गया है। इसके विभिन्न खण्डों में क्रमशः प्राचीन और आधुनिक दर्शन, भारतीय दर्शन, दर्शन के उद्देश्य, तत्वमीमांसा, विश्व विज्ञान, विज्ञान दर्शन, सूक्ष्म जगत् और जैविक ऊर्जा, अनन्त की ओर, जैविक ऊर्जा विकासवाद, आत्मा जीव व मन, मानव निर्माण और कलम विधि, गीता का ब्रह्म, धर्म और उसकी चेतना, धर्म और धार्मिक अनुभूति, काल-अक्षयकाल, महाकाल, ज्ञान और ब्रह्म एवं प्राणियों में पायी जाने वाली विकृतियाँ : तात्त्विक-कारण का विवेचन किया गया है। कृति की विशेषता यह है कि इसके प्रतिपाद्य विषयों पर वैज्ञानिक दृष्टि से चिन्तन किया गया है और उस सन्दर्भ में पाश्चात्य वैज्ञानिकों के अनेक सन्दर्भ भी प्रस्तुत किये गए हैं। साथ ही उन्होंने अधनिक मनोविज्ञान विशेषतः फ्रायड आदि की व्याख्यों का उपयोग किया है। वस्तुतः यह कृति दार्शनिक अवधारणाओं को वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष में देखने का प्रयास है, लेखक ने अन्त में वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर ही यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि परम तत्व, निर्गुण एवं आश्चर्यजनक है। कृति का मुद्रण निर्दोष व साज-सज्जा आकर्षक है। कृति पठनीय व संग्रहणीय है।
'सागरणा स्मरण तीर्थे, लेखक-- पूज्य श्री मनोहरकीर्तिसागर सूरीश्वर जी तथा डा. कुमारपाल देसाई, संपादक-- पूज्य श्री अजयकीर्तिसागर जी एवं पूज्य श्री विजयकीर्तिसागरजी, प्रकाशक-- श्री अविचल ग्रन्थ प्रकाशन समिति, मूल्य-- अमूल्य, प्राप्ति स्थान-- श्री बुद्धिसागर सूरीश्वर जैन समाधि मन्दिर, स्टेशन रोड, बीजापुर (गुजरात), पिन-8823701 For Private & Personal Use Only
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