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पुस्तक-समीक्षा
समस्त विवेचन में न केवल जैन आगमों के आधार पर विवरण प्रस्तुत किया है, अपितु आधुनिक मनोवैज्ञानिक खोजों का भी यथा स्थान निर्देश किया है। यद्यपि पराविज्ञान के क्षेत्र में अब इतनी खोजें हो चुकी है कि उन सब को आधार बनाकर जैन अवधारणाओं के सन्दर्भ में एक बहुत ही प्रमाणिक ग्रन्थ की रचना की जा सकती है। मुनि जी अभी युवा हैं और इस क्षेत्र में यह उनका प्रथम प्रयास है, अपेक्षा है कि वे भविष्य में पाश्चात्य भाषाओं में प्रकाशित परामनोविज्ञान सम्बन्धी सामग्री का अध्ययन करके इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का प्रणयन करेंगे।
भगवत्ता फैली सब ओर (कुन्द-कुन्दवाणी) लेखक-- महोपाध्याय चन्द्र प्रभसागर, पृ.110, आकार- क्राउन 16 पृष्ठीय, पेपरबैक संस्करण प्रथम, सन् 1991, प्रकाशक-- जितयशाश्री फाउण्डेशन, 9-सी, एस्प्लानेड रो ईस्ट, कलकत्ता, मूल्य 10/=
प्रस्तुत लघु गन्थ महोपाध्याय श्री चन्द्रप्रभासागर द्वारा ऋषिकेश चातुर्मास के समय अष्टपाहुड पर दिये गये आठ आध्यात्मिक प्रवचनों का संकलन है, इसमें सरल भाषा में विषय को बोधगम्य बनाया गया है। इसमें कुन्द-कुन्द की गाथाओं को आधार बनाकर दर्शन को जीवन में उतारने, बहिर्जगत के प्रति उपेक्षा भाव रखने, सांसारिक बन्धनों से मुक्त होने की अभिलाषा, ध्यान मार्ग एवं मार्ग फल आदि विषयों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया गया है। प्रवचनों के बीच सटीक दृष्टान्तों से विषय अत्यन्त सहजता से हृदयग्राही हो जाता है।
पुस्तक की छपाई एवं साज-सज्जा आकर्षक है। पुस्तक पठनीय एवं संग्रहणीय है। पुस्तकों को लागत मूल्य पर उपलब्ध कराने का जितयशाश्री फाउण्डेशन का प्रयास सराहनीय
प्राकृत एवं जैनविद्या शोध-सन्दर्भ (संकलन), लेखक-- डॉ. कपूरचन्द जैन, पृ.130, आकारडिमाई सजिल्द, द्वितीय संस्करण 1991, प्रकाशक-- कैलाशचन्द्र जैन स्मृतिन्यास खतौली (यू.पी.)।
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