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श्रमण, अक्टूबर-दिसम्बर, १८८२
प्रस्तुत कृति में योगनिष्ठ आचार्य देवेश श्रीमद्, बुद्धिश्वर सागर सूरि जी, समता साधक, आचार्य प्रवर श्रीमद् कीर्तिसागर सूरीश्वर जी एवं प्रवचन प्रभावक गच्छाधिपति, आचार्य श्री सुबोधसागर सूरीश्वर जी इन तीन महान साधक आत्माओं एवं प्रभावक आचार्यों का जीवन वृतांत वर्णित है। ये तीनों ही चारित्रात्मायें श्वेताम्बर मूर्ति पूजक जैन संघ की महान विभूतियाँ हैं। प्रस्तुत कृति में इन तीनों के व्यक्तित्व एवं संघ कार्यों का गुजरती भाषा में अत्यन्त रोचक और प्रभावपूर्ण वर्णन है। उनका प्रमाणिक जीवन वृत्त, धर्मसाधना तथा उनके द्वारा किये गए महत्त्वपूर्ण कार्यों का विवरण देने के कारण यह कृति भविष्य में जैन इतिहास के सन्दर्भ में महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगी। कृति में इन तीनों आचार्यों के जीवन से सम्बन्धित अनेक सुन्दर एवं मनमोहक चित्र निश्चय ही पाठकों को प्रभावित करते हैं। कृति का मुद्रण अत्यन्त ही सुन्दर व निर्दोष है। इसमें बहुत ही मूल्यवान विदेशी कागज का उपयोग किया गया है। चित्रों का बहुरंगी मुद्रण एवं अतिकलात्मक आवरण सहज ही पाठकों के मन को मोह लेता है। कुमारपाल देसाई जैसे प्रबुद्ध विचारक की लेखनी से निश्रत यह कृति अत्यन्त आकर्षक बन पड़ी है। कृति के अन्त में सुबोध सागर जी म.सा. के सचित्र जीवन आलेखन के साथ २४ तीर्थंकरो की अधिष्ठायिका देवियों, सोलह विद्या देवियों तथा २४ यक्षों के भी सुन्दर रंगीन चित्र हैं, जो कि कृति के महत्त्व को बढ़ा देते हैं, कृति संग्रहणीय है।
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