Book Title: Sramana 1992 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 49
________________ डॉ. महेन्द्रकुमार जैन 'मनुज 47 से अहमदाबाद, ईडर, इन्दौर और सागर की चार पाण्डुलिपियों की जिराक्स प्रतियां प्राप्त कर ली हैं। इस टीका का रचयिता अज्ञात है। षट्पाहुड की एक टब्बा टीका भूधर ने लिखी है। इसकी एक पाण्डुलिपि जयपुर के दिगम्बर जैन मंदिर ठोलियान के शास्त्रभण्डार में विद्यमान होने की सूचना है। इसके पत्र 62, वेष्टन संख्या 244 है। यह प्रति संवत 1751 की है। इस पाण्डुलिपि के विवरण से ज्ञात होता है कि यह टब्बा टीका भूधर ने प्रतापसिंह के लिए बनाई थी। सम्वत 1801 में षट्पाहुड का हिन्दी पद्यानुवाद देवीसिंह छाबड़ा ने किया है। इस अनुवाद की तीन पाण्डुलिपियाँ ज्ञात हैं। इन तीनों के अलग-अलग स्थानों में विद्यमान होने की सूचना है। एक दिगम्बर जैन मंदिर आदिनाथ, बूंदी10, एक पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर, इन्दरगढ़। और एक संभवनाथ दिगम्बर जैन मंदिर, उदयपुर12 के शास्त्रभण्डार में। आदिनाथ मंदिर, बंदी की प्रति संवत् 1850 की है। इससे ज्ञात होता है कि देवीसिंह छाबड़ा ने षट्पाहुड का हिन्दी पद्यानुवाद अष्टपाहुड की ढूंढारी भाषा वचानिका (पं. जयचन्द छावड़ा संवत् 1867 ) से पूर्व किया है। सम्वत् 1820-1886 के विद्वान् पं. जयचन्द छावड़ा ने संवत् 186713 में अष्टपाहुड पर ढूंढारी भाषा में वनिका टीका लिखी। प्राकृत-संस्कृत में लोगों की दक्षता प्रायः समाप्त हो जाने के कारण यह टीका बहुत प्रसिद्ध हुई। यही कारण है कि इस टीका युक्त अष्टपाहुड की पाण्डुलिपियाँ गाँवों-गाँवों में अब भी सैकड़ों की संख्या में उपलब्ध हैं। यह टीका प्रकाशित हो चुकी है। पं. जयचन्द छावड़ा ने समयसार, स्वामीकार्तिकेयानुप्रेक्षा, द्रव्यसंग्रह, परीक्षामुख, आप्तमीमांसा, पत्रपरीक्षा, सर्वार्थसिद्धि, ज्ञानार्णव आदि अनेक ग्रन्थों पर ढूंढारी भाषा वचनिका लिखी हैं।5। षटपाहुड पर सं. 1789 से पूर्व भी एक हिन्दी टीका लिखी गयी है। इस टीका की 3 पाण्डुलिपियाँ ज्ञात हैं। 2 प्रतियाँ दिगम्बर जैन मंदिर अभिनन्दन स्वामी, बूंदी और एक प्रति दिगम्बर जैन मंदिर नागदी, बूंदी में सुरक्षित है। अभिनन्दन स्वामी मंदिर की वेष्टन संख्या 144 की प्रति संवत् 1789 में लिखी गयी। यह पाण्डुलिपि जती गंगारामजी ने सवाई जयसिंह के राज्य में माणपुर ग्राम में लिखी। इस टीका का लेखक अज्ञात है। इस तरह अब तक के अनुसंधान से अष्टपाहुड एवं षट्पाहुड की ग्यारह टीकाओं की जानकारी प्राप्त हुई है। ये टीकाएँ कन्नड, संस्कृत, ढूंढारी और हिन्दी भाषा में की गई हैं। उपर्युक्त ग्यारह टीकाओं में से श्रुत सागरसूरि-कृत संस्कृत तथा जयचन्द छावड़ा-कृत ढूंढारी भाषा वचनिका टीका ही मुद्रित हुई हैं। विज्ञ पाठकों से अनुरोध है कि अष्टपाहुड की टीकाओं तथा टीकाकारों और प्राचीन पाण्डुलिपियों के विषय में यदि कोई जानकारी हो तो मुझे दें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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