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शिवप्रसाद
जयप्रभसूरि के पट्टधर जयभद्रसूरि
इनके द्वारा प्रतिष्ठापित तीन प्रतिमायें प्राप्त हुई हैं। इनका विवरण इस प्रकार है :
वि.सं. 1525
वैशाख सुदि 3 सोमवार
बीकानेर जैनलेखसंग्रह संपा. अगरचन्द, भंवरलाल नाहटा, लेखांक 1315
वि.सं. 1534
वि. सं. 1536
.61
आषाढ़ सुदि 1 गुरुवार आषाढ़ सुदि 5 गुरुवार
जयप्रभसूरि के द्वितीय पट्टधर भुवनप्रभसूरि
इनके द्वारा प्रतिष्ठापित 2 प्रतिमायें मिलती हैं। इनका विवरण इस प्रकार है :
नाहर, पूर्वोक्त, भाग 3, लेखांक 2202 लोढ़ा, पूर्वोक्त, लेखांक 101
वही, लेखांक 1434 विनयसागर, पूर्वोक्त, लेखांक 796
वि.सं. 1551 पौष सुदि 13 शुक्रवार वैशाख वदि 4 रविवार
वि.सं. 1572
कमलप्रभसूरि
इनके द्वारा प्रतिष्ठापित एक प्रतिमा प्राप्त हुई है जो संभवनाथ की है। यह प्रतिमा आदिनाथ जिनालय, थराद में है। इसका विवरण निम्नानुसार है :
वि.सं. 1582 वैशाख सुदि 3
लोढ़ा, पूर्वोक्त, लेखांक 207
कमलप्रभसूरि के पट्टधर पुण्यप्रभसूरि
इनके द्वारा प्रतिष्ठापित 2 प्रतिमायें मिलती हैं जिनका विवरण इस प्रकार है :
:
वि.सं. 1608 वैशाख सुदि 13 शुक्रवार मुनि बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग 1 लेखांक 124 वि. सं. 1610 फाल्गुन वदि 2 सोमवार मुनि विशालविजय, पूर्वोक्त, लेखांक 348
विद्याप्रभसूरि के पट्टधर ललितप्रभसूरि
इनके द्वारा प्रतिष्ठापित एक प्रतिमा मिली है, जिस पर वि. सं. 1654 का लेख उत्कीर्ण है: वि.सं. 1654 माघ वदि 1 रविवार मुनि बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग 1, लेखांक 101
महिमाप्रभसूरि
इनके द्वारा प्रतिष्ठित वि. सं. 1768 की एक प्रतिमा मिली है : वि.सं. 1768 वैशाख सुदि 6 गुरुवार
मुनि बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग 1, लेखांक 332
उक्त अभिलेखीय साक्ष्यों द्वारा पूर्णिमापक्ष की प्रधानशाखा के जिन मुनिजनों के नाम ज्ञात होते हैं, उनमें जयप्रभसूरि के शिष्य जयभद्रसूरि को छोड़कर शेष सभी नाम पुस्तकप्रशस्तियों में
भी मिलते हैं साथ ही उनका पूर्वापर सम्बन्ध भी सुनिश्चित किया जा चुका है।
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