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श्रमण, अक्टूबर-दिसम्बर, १६
___ डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन की सूचना के अनुसार 13वीं शताब्दी में बालचन्द ने मोक्षपाहुड पर कन्नड टीका लिखी है। इसके अतिरिक्त इन्होनें आचार्य कुन्दकुन्द के समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय और नियमसार पर कन्नड टीकाएँ लिखीं हैं। तत्वार्थसूत्र, द्रव्यसंग्रह और परमात्मप्रकाश पर भी इनके द्वारा कन्नडटीकाएँ रचे जाने की सूचनाएँ प्राप्त हैं। मोक्षपाहुड पर बालचन्द्र-कृत कन्नड टीका की एक ताडपत्रीय पाण्डुलिपि के जैनमठ मूडविद्री में उपलब्ध होने की सूचना है। इसकी पत्र संख्या 12 व ग्रन्थांक 758 है। मोक्षपाहुड पर ही 13वीं शताब्दी में कनकचन्द ने कन्नड टीका लिखी है। इनके विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त नहीं होती।
आरा के जैन सिद्धान्त भवन में पाहुडों की कन्नड भाषा में तीन ताडपत्रीय पाण्डुलिपियाँ विद्यमान हैं। दो मोक्षपाहुड एवं एक षट्प्राभृत नाम से है। मोक्षप्राभूत के पत्र 17 और 18 तथा ग्रन्थांक 1028 और 1029 हैं। षटप्राभत के पत्र 40 तथा ग्रन्थांक 1357 हैं। 1028 नं. की पाण्डुलिपि मोक्षप्राभूत की है। इसकी लिपि कन्नड है। इसमें मूल प्राकृत-गाथाओं की संक्षिप्त टीका भी है। टीका की भाषा कन्नड है। प्रति जीर्ण है। पत्र टूट रहे हैं। इसका परीक्षण कर लिया गया है।
षडपाहुड पर एक अन्य टीका की सूचना हमें भट्टारक यशः कीर्ति सरस्वती भण्डार, ऋषभदेव के प्रकाशित सूचीपत्र से प्राप्त हुई। इस सूची में षट्पाहुड की दो पाण्डुलिपियों का विवरण है। एक प्रति के विवरण में टीकाकार के कॉलम में "टी देवी" तथा भाषा के कॉलम में "प्राकृत टी" लिखा है। टी देवी के विषय में कोई जानकारी प्राप्त नहीं है। सम्भव है पाण्डुलिपि में कुछ विवरण सुरक्षित हो।
प्रभाचन्द्र महापण्डित ने अष्टपाहुड की 'पंजिका नाम से संस्कृत टीका लिखी है। डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन ने इनका समय सम्वत् 1010-1060 सूचित किया है। इन्होने इन्हें "प्रभाचन्द्र महापण्डित ऑफ धारा" लिखा है। इस सूचना के अनुसार प्रभाचन्द्र महापण्डित ने प्रवचनसार पर "प्रवचनसार सरोज भास्कर", पंचास्तिकाय पर 'पंचास्तिकाय प्रदीप और समयसार तथा मूलाचार पर भी टीकाएँ लिखीं हैं। अष्टपाहुड पर एक संस्कृत टीका प्रभाचन्द्र महापण्डित से भिन्न प्रभाचन्द्र ने की है। इनका समय 1270 से 1320 ई. है। इन्होंने समयसार, प्रवचनसार और पंचास्तिकाय पर भी टीकाएँ रची हैं। विक्रम की 16वीं शताब्दी के आचार्य श्रुतसागर सूरि ने अष्टपाहुड के दसण, सुत्त, चरित्त, बोह, भाव और मोक्खपाहुड पर पदखण्डान्वयी संस्कृत टीका लिखी है। यह टीका प्रकाशित हो चुकी है। श्रुतसागर सरि ने कुल 38 रचनाएँ की हैं। ये टीकाग्रन्थ, कथाग्रन्थ, व्याकरण और काव्यग्रन्थ हैं।
षट्पाहुड पर एक अन्य संक्षिप्त संस्कृत टीका प्राप्त हुई है। इससे मात्र गाथार्थ स्पष्ट होता है। इस टीका की अनेक पाण्डुलिपियाँ भारत और विदेशों में भी मौजूद हैं। इसकी 20 पाण्डुलिपियों की जानकारी है। ये प्रतियाँ जयपुर, महावीरजी, अहमदाबाद, ईडर, ब्यावर, चाँदखेडी, बम्बई, इन्दौर, सागर और स्ट्रासवर्ग (जर्मनी) के शास्त्रभण्डारों में सुरक्षित हैं। इनमें Jain Education International For Private & Personal Use Only
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