Book Title: Sramana 1992 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
View full book text
________________
38
श्रमण, अक्टूबर-दिसम्बर, १९
48. मल्लवादी क्षमाश्रमण, द्वादशारनयचक्र (जम्बूविजय द्वारा संपादित) भाग-1, पृ. 65 49. विद्यानन्दि, तत्वार्थश्लोकवात्तिक 1.12.8-9 एवं वृत्ति प्रभाचन्द्र, न्यायकुमुदचन्द्र
भाग-1, पृ. 48-51 आदि 50. अकलंक, लघीयस्त्रय 23, अकलंकग्रन्थत्रयम्, पृ. 8, विद्यानन्दि, तत्त्वार्थश्लोकवात्तिक
1.12.13 आदि 51. (i) अक्ष्णोति व्याप्नोति जानातीत्यक्ष आत्मा, तमेव प्राप्तक्षयोपशमं प्रक्षीणावरणं व
प्रतिनियतं प्रत्यक्षम्। - पूज्यपाद, सवार्थसिद्धि 1.12, पृ. 72 (ii) इन्द्रियानिन्द्रियानपेक्षमतीतव्यभिचारसाकारग्रहणं प्रत्यक्षम्। अकर, तत्त्वार्थवात्तिक,
1.12, पृ.53 52. (i) तत्र सांव्यवहारिकम् इन्द्रयानिन्द्रियप्रत्यक्षम्। - अकलंकग्रन्थत्रयम्, पृ.9
(ii) इंदियमणो भवं जं तं संववहारपच्चक्खं । - जिनभद्र, विशेषावश्यक भाष्य, 95 53. पारमार्थिक पुनस्त्पत्तावात्ममात्रापेक्षम्। - वादिदेवसूरि, प्रमाणनयतत्वालोक 2.18 54. (i) प्रत्यक्षं विशदं ज्ञानम् - अकलंक, सिद्धिविनिश्चय, 1.19
(ii) विशदज्ञानात्मकं प्रत्यक्षम् - विद्यानन्दि, प्रमाणपरीक्षा, पृ. 37 (iii) विशदं प्रत्यक्षम् - मणिक्यनन्दी, परीक्षामुख 2.3 (iv) स्पष्टं प्रत्यक्षम् - वादिदेवमूरि, प्रमाणनयतत्त्वालोक 2.2
(v) विशदः प्रत्यक्षम् - हेमचन्द्र, प्रमाणमीमांसा 1.1.13 55. (i) अनुमानाद्यतिरेकेण विशेषप्रतिभासनम्।
तदैशधं मतं बुद्धेश्वैशदामतः परम्।। लघीयस्त्रय ( अकलंक) का.4 (ii) अनुमानाद्याधिक्येन विशेषप्रकाशनं स्पष्टत्वम्। - वादिदेवसरि, प्रमाणनयतत्वालोक
2.3
56. प्रतीत्यन्तराव्यवधानेन विशेषवत्तया वा प्रतिभासनं वैशद्यम् । मणिक्यनन्दी परीक्षामुख 2.4 57. प्रमाणान्तरानपेक्षेदन्तया प्रतिभासो वा वैशद्यम्। - हेमचन्द्र, प्रमाणमीमांसा 1.1.4 58. शान्तरक्षित, तत्त्वसंग्रह 1264-1283 59. अभिप्रायविसंवादादपि भ्रान्तेः प्रमाणता -धर्मकीर्ति, प्रमाणवातिक 2.56 60. अर्थक्रियानुरोधेन प्रमाणत्वं व्यवस्थितम् - धर्मकीर्ति, प्रमाणवात्तिक 2.58
मणिप्रदीपप्रभयोमणिबुयाभिधावतोः । मिथ्याज्ञानाविशेषेऽपि विशेषोऽर्थक्रियां प्रति।। यथा तथाऽयथार्थत्वेऽप्यनुमानतदाभयोः ।
अर्थक्रियानुरोधेन प्रमाणत्वं व्यवस्थितम्।। धर्मकीर्ति, प्रमाणवार्तिक 2.57-58 62. विद्यानन्दि, अष्टसहस्री, पृ. 277-78 63. त्रिस्पलिंगतोऽर्थदृक्-दिङ्नाग, प्रमाणसमुच्चय, उद्धृत, द्वादशारनयका
(जम्बूविजयसंपादित) भाग-1 परिशिष्ट, पृ. 122 64. निस्पलिंगपूर्वत्वं ननु संवादिलक्षणम् - शान्तरक्षित, तत्त्वसंग्रह 1467, त्रिस्पते।
लिंगादनुमेयार्थदर्शनम् - शान्तरक्षित, तत्त्वसंग्रह 1361 Jain Education International For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82