Book Title: Sramana 1992 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 42
________________ 40 86. प्रभाचन्द्र, न्यायकुमुदचन्द्र भाग 2, पृ. 407-408 87. अकलंक, प्रमाणसंग्रह का. 10 अकलंकग्रन्थत्रयम्, पृ. 99 88. विद्यानन्दि, तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 1.13.9.27 89. अकलंकग्रन्थत्रयम्, पृ. 15.29 एवं विद्यानन्दि, प्रमाणपरीक्षा, पृ. 43 90. माणिक्यनन्दी, परीक्षामुख 3.5 91. वादिदेवसूरि, प्रमाणनयतत्त्वालोक 3. 7 एवं अकलंक न्यायविनिश्चय 329.33 92. द्रष्टव्य, वादिदेवसूरि, स्याद्वादरत्नाकर, पृ. 514 93. (i) नान्तरीयकता भावाच्छब्दानां वस्तुभिस्सह । - धर्मकीर्ति, प्र. वा. 3. 213-214 (ii) न हि वाच्यैर्वस्तुभिः सह कश्चित् तादात्म्यलक्षणः तदुत्पतिलक्षणो वा प्रतिबन्धो वचसामस्ति । - कमलशील, पंजिका, तत्त्वसंग्रह 1512, पृ. 538 (i) ते हि वक्त्रभिप्रायसूचकाः । धर्मकीर्ति, प्र. वा. 3.214 — (ii) वचोभ्यो निखिलेभ्यो विवक्षैषानुमीयते । - शान्तरक्षित, तत्त्वसंग्रह 1514 95. शान्तरक्षित, तत्त्वसंग्रह, 1520 96. सहजयोग्यतासंकेतवशाद्धि शब्दादयो वस्तुप्रतिपत्तिहेतवः । 94. श्रमण, अक्टूबर-दिसम्बर, १९८३ 100. 3.96 97. तस्य हि वचमविसंवादि भवति । - वादिदेवसूरि, प्र. न. त. 4.5 98. अकलंकांथत्रयम्, पृ. 9 99. (i) तत्र स्वलक्षणं तावन्न शब्दैः प्रतिपाद्यते । - शान्तरक्षित, तत्त्व संग्रह, 871 (ii) विकल्पयोनयः शब्दाः विकल्पाः शब्दयोनयः । कार्यकारणता तेषां नार्थं शब्दाः स्पृशन्त्यपि ।। माणिक्यनन्दी परीक्षामुख दिङ्नाग, उद्धृत, Buddhist Logic vol.II (Stcherbaksky) p. 405f. N.1 स्वार्थमन्यापोहेन भाषते - दिङ्नाग, उद्धृत, तत्त्वसंग्रह पंजिका, पृ. 529 Jain Education International सहायक आचार्य, संस्कृत विभाग, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर (राजस्थान) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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