Book Title: Siddhantasara Dipak
Author(s): Bhattarak Sakalkirti, Chetanprakash Patni
Publisher: Ladmal Jain

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Page 9
________________ [१] आपका सहयोग एक वर्ष बाद अर्थात् सं० २०३५ के निवाई चातुर्मास में प्राप्त हुआ । संशोधन होने के तुरन्त बाद ग्रंथ प्रेस में दे दिया, किन्तु कुछ विशेष कारणों से श्री पांचूलालजी, मालिक कमल प्रिन्टर्स करीब एक सत्र वर्ष पर्यन्त ग्रन्थ का मुद्रण कार्य प्रारम्भ नहीं कर सके । गत वर्ष कार्य प्रारम्भ किया और अल्पकाल में ही उसे पूर्ण मनोयोग पूर्वक सम्पन्न किया । श्रीमान् डॉ० वेतनप्रकाशजी पाटनी विश्वविद्यालय जोधपुर ने बड़ी संलग्नता पूर्वक इसका सम्पादन किया। श्री ब्र० लाडमलजी बाबाजी ने प्रत्यन्त समतापूर्वक प्रकाशन कार्य सम्हाला । श्रीमान् पूनमचन्दजी गंगवाल पचार ( जिन्होंने श्रीयुत शान्तिकुमारजी कामदार शान्ति रोडवेज के साथ बाहुबलि सहस्राब्दि महामस्तकाभिषेक के शुभावसर पर एक सहस्र साधर्मी बन्धुयों को दो माह पर्यन्त अनेक पुण्य क्षेत्रों की यात्रा कराई ), श्रीमान् रामचन्द्रजी कोठारी जयपुर श्रीमान् माणिकचन्द्रजी पालीवाल कोटा श्रादि अनेक द्रव्य दाता महानुभावों ने अपनी चंचल लक्ष्मी का सदुपयोग कर अनुकरणीय सहयोग प्रदान किया । संघस्थ श्री कजोड़ीमलजी कामदार जोबनेर बालों का चार वर्ष से पूर्ण सहयोग प्राप्त होता रहा है। इस प्रकार जिन जिन भन्यात्मानों ने इस महान ज्ञानोपकरण में अपना सराहनीय सहयोग प्रदान किया है, उन्हें परम्परया केवलज्ञान की प्राप्ति श्रवश्यमेव होगी, तथा यह सिद्धान्त ग्रन्थ अनेक भव्यात्माओं के कर्मोपशमन एवं ज्ञानवृद्धि में कारण होगा ऐसा मेरा विश्वास है । ३०।३।१६८१ - भा० विशुद्धमति

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